________________
ओक्टोबर २००२
४३
विजयवेजयंतजयंतअवराजियं
सव्वट्ठसिद्धि पवरजिवेहि(वहि) वियराईयं (विराइयं) ॥६॥ पंचणुत्तेरविमाणेसु जिणमंदिरं
_ एगमेगं नमसामि अइसुंदरं । लक्खचुलसी य सहसा य सत्ताणुई
सव्वविमाण जिणभवण तेवीसई ॥७॥ इत्तियं सव्वसंखाय परिभासियं
उड्डलोयंमि जिणवरिहिं सुपयासियं । भवणवइमज्झि चेईहरे सुंदरे
नमिसु रोमंचभरि भरीय जोडी करे ॥८॥ सत्तेव कोडि बावत्तरीय
लक्खा भवसायर-सत्तरीय । वंतरवरजोइसी(सि)एसु दक्ख
पभणउं जिणमंदिर नत्थि संख ॥९॥ कुंडलि रुयगेसु वि माणुसंमि
नंदीसरि वेयड्डि सुरगिरिंमि । हिमवंत-सिहरि-निसढाईएसु
रिसहाइपडिमासोहीएसु ॥१०॥ सत्तुंजि गिरी(रि) सिरिउज्जयंति
साचुरि वीर नर्मु कणयकंति । संखेसरि करहेडइ पुरंमि
थंभणइ पासु जालउरि रंमि ॥११॥ अट्ठावय-गिरिवरि आबुयंमि
समेहसिहरि भरुयच्छि रंमि । इय सासय-असासयचेईएसु
तित्थेसर पणमिसु मणहरेसु ॥१२॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org