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________________ ३२ अनुसंधान-२१ नरवइ-सुरवइहारिनारिवरचक्ख(क्खु)सहंजण लक्खणलक्खियपाणिपाय जिणसज्जणरंजण । सुह सुह हर हर मोहकोहबलिकुंजरगंजण जय जय जय जयकारि मारिगुरुभूरहभंजण ॥५।। दमसमसंजमतार पारगयवम्महदुद्धर विसहर विसहर सोम सोम गइनिज्जियसिंधुर । भव भवभयभरभंगरंग जणमोहग सोहग- . दायग नायग पावदाव जय दोहगखोहग ॥६।। जणमणपंकयभाणु माणुकरिमारणवारणरिउसम समसमसारुदार भवसायरतारण । निग्गयदुग्गयतिक्खदुक्ख जय दारिददारणजलहर जलहरराव भावरिउवारणकारण ||७|| जय गयरय रयमाय रायनयसंनयसज्जलसरवर सिरिवर संत दंत बहुबाहुमहाबल । पणिमिरसुरवरमौलिमौलिमणिसुंदरभासुर रइभररंजियपायपीढ जय विस्सदिणेसर ॥८॥ ससहरहरहिमहारिहार हस सेससहोदर सियजसपूरियविस्स विस्सगुरु पत्तमहोदर । संजय संजयहारिहारितर वाणिविनिज्जि(ज्जि)यसारसियामय नंद देव दहदोसविवजि(ज्जि)य ॥९॥ इय जिणवरथुत्तं गुणगणजुत्तं, जंपइ गुणइ जो भवि(य)जणु । सो दुहतरुखंडण जय जणमंडण लहइ सिवलह(सुह) सुद्धमण(णु) ॥१०॥ ॥ श्रीसीमंधरस्वामिविज्ञप्तिः पं.धर्मशेखरगणिकृता ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520521
Book TitleAnusandhan 2002 09 SrNo 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages74
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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