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________________ २. विज्ञप्तिका संग्रह प्राकृत- अपभ्रंश भाषामय. आ विज्ञप्तिकासंग्रहमां छ विज्ञप्तिओ छे. जेमां प्रथम त्रण विज्ञप्तिओ तपगच्छना त्रण आचार्योनी, चोथी महत्तरा साध्वी श्रीचारित्रचूलानी, पांचमी चतुर्मुख श्रीमहावीरस्वामिनी अने छठ्ठी श्रीसीमंधरस्वामिनी छे. अत्यंत सुंदर विशेषणोथी गर्भित स्तुतिओ अने विनंतिओ आ विज्ञप्तिओनी लाक्षणिकता छे. वळी, उत्तम शब्दो अने अलंकारोना प्रयोगो साथे व्यवस्थितपणे छंदोमां गूंथायेली होवाथी रचयिताना काव्यकौशलने रजू करे छे. १. सं. मुनि कल्याणकीर्तिविजय प्रथम विज्ञप्ति तपगच्छाचार्य श्रीज्ञानसागरसूरि भगवंतनी छे । तेओ प्रसिद्ध आचार्य सोमसुंदरसूरिना शिष्य छे अने देवसुंदरसूरिना गुरु छे । आ विज्ञप्तिमां विज्ञप्तिकार आचार्य भगवंतना विविध गुणोनुं उत्तम रीते वर्णन करे छे । जेमां तेमना ज्ञान दर्शन - चरित्र - जनप्रतिबोध - मोहजय - तप वगेरे गुणो तथा शरीरनां विविध लक्षणोनुं वर्णन छे । छेल्ला (१०मा) पद्यमां गुणकीर्तननुं फल जणावतां कह्युं छे के आ रीते जे आपना गुणोने स्तवे छे तेओ शीघ्र मोक्षना सुखने पामे छे । १० कडीनी आ विज्ञप्तिमां १ थी ९ कडीओ २० मात्राना समचतुष्पदी स्रग्विणी छंदमां छे अने छेल्ली कडी अपभ्रंश साहित्यमां प्रसिद्ध ३२ मात्राना द्विपदी घत्ता छंदमां छे जेमां यति १०-८-१४ मात्रा पर थाय छे । Jain Education International - द्वितीय विज्ञप्ति विशाल तपगच्छरूपी गगनमां दिनकर समान तेजस्वी आचार्य श्रीकुलमण्डनसूरि भगवंतनी छे । अहीं पण विज्ञप्तिकार पूर्ववत् तेमना शरीरनां लक्षणोनुं तथा कुमतभेद - उत्तमधर्मदेशना - जिनागमपारगामिता- समिति - गुप्तिपालन क्षमा वगेरे विविध गुणोनुं वर्णन सुंदर शब्दोमां करे छे अने अंते गुणकीर्तननुं फल मोक्षसुख छे तेवुं जणावे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520521
Book TitleAnusandhan 2002 09 SrNo 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages74
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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