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________________ अनुसंधान-२० रचनानी खरी विशिष्टता, दरेक स्तवने अंते आवता बंधकाव्य-पद्यमां छं. पद्मबन्ध, स्वस्तिकबन्ध, वज्रबन्ध अने बन्धुकस्वस्तिक बन्धनी तेमज तेनां पद्योनी रचना जोतां कविना पाण्डित्य प्रत्ये माधुं नमी जाय छे. आ हारावलीना कर्ता श्रीजयतिलकसूरि छे; एमनुं दीक्षानाम जयशेखर हशे अने सूरिपद प्राप्त थया बाद तेओ जयतिलकसूरि एवं नाम पाम्या हशे, तेमज तेमना गुरुनुं नाम चारित्रप्रभगुरु हतुं तेटलुं तो प्रथम अने बाकीना स्तोत्रोना १४मा पद्य परथी जाणी शकाय छे. कवि पोताने 'आगमिक' विशेषणथी वर्णवे छे, एटले ते आगमगच्छना होवानुं समजाय छे. कवि क्यांय पोतानो समय, आ रचनानो समय के आ प्रति, जे कविना ज हस्ताक्षरमां होवानुं सहेजे अनुमानी शकाय तेम छे तेनो लेखनसमय मण नोधता नथी. परंतु प्रतिनी लखावट परथी ते सोळमा शतकमां लखाई होय तेवुं अनुमान थाय छे, अने ते आधारे कविनो सत्ता समय पण ते शतक होवानुं अनुमान थाय छे. भावनगर-आत्मानन्द जैन सभामा रहेला 'मुनि भक्तिविजय ग्रंथसंग्रह' नी क्र. ९८०/६ ए प्रतिनी फोटो कोपी उपरथी आ वाचना संपादित करवामां आवी छे. प्रति ६ पानांनी छे, अने सुन्दर - सुवाच्य अक्षरलेखनना उत्तम नमुनारूप छे. दरेक पद्योनां चित्र - कोठा कविए पोते ज बनावी मूकी दीधा छे. मूल स्तव- काव्य अने तेनी टीका बन्ने एक ज कर्ता-कृत छे. आ प्रतनी फोटोकोपी लेवानी मंजूरी आपवा बदल आत्मानन्द सभाना तत्कालीन कार्यवाहक स्व. श्रीहीरालाल बी. शाहनो आभार मानुं छं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520520
Book TitleAnusandhan 2002 07 SrNo 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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