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निवेदन यात्रा ए मनुष्यजीवननी अत्यंत उमदा, उपयुक्त अने उन्नायक प्रवृत्ति छे. यात्राना विविध प्रकारोमा तीर्थयात्रा अने पदयात्रानी जेम बोधयात्रा अने शोधयात्रानो पण समावेश थाय छे. 'अनुसन्धान' पत्रिका ए शोधयात्रानी प्रवृत्ति छे. आ यात्रा- प्रवृत्तिमां जेटला वधु सहयात्रिको जोडाय तेटलो वेग, उत्साह, परिणाम वगेरेमां वधारो अने लाभ थाय. संस्कृतनी प्रख्यात गद्योक्तिमां कडं पण छे के ‘एको ध्यानं, द्विरध्यायी, त्रिभिः पन्थाः', अर्थात् यात्रामां त्रण (के तेथी अधिक) सहयात्री होवा घटे. सौने आमंत्रण - पुन: पुनः !
- विजयशीलचन्द्रसूरि
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