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________________ 32 July-2002 पानांमां ज पूरो थयो छे. छेल्ले क्षणवादी बौद्ध साथे मुठभेड छे, जे अधूरी रही छे. लागे छे के ते चर्चा हजी लांबी चाली होत, अने त्यार पछी अन्य दर्शनो-संबद्ध पण चर्चा होत. तेमणे स्वयं बे स्थळे निर्देश आप्यो छे के - "भेदाभेदस्थले एव वक्ष्यामः" अने "मोक्षसिद्धौ अभिधास्यमानत्वात्". आनो अर्थ ए के स्याद्वादानुसारी पदार्थो तथा सिद्धान्तोनुं प्रतिपादन करतां करतां भेदाभेदवाद तथा मोक्षसिद्धि पण तेओ आलेखनार हता. पण आपणा दुर्भाग्ये आ बधुं नथी बन्यु- नथी मळ्यु. २३मा पत्र पर वंचाती छेल्ली पंक्तिमा "इति चे" आटलुं छे. आमां 'चेत्' एवो शब्द पण तेमणे पूरो नथी कर्यो, 'चे' करीने ज अटकी गया छे; ते परथी तेमनी व्यस्ततानो अंदाज काढी शकाय छे, अने आ त्वरानुं कारण पण समजी शकाय छे. आ लखाण एकवार छूट्यु, ते छूट्यु; पछी तेमने फरीथी आने जोवा-सुधारवा-पूर्ण करवानो अवकाश ज नहि सांपड्यो होय ! अद्भुत ! आत्मवाद जेवो गहन के सूक्ष्म विषय अने तेनी जटिल दलीलोनी शृंखला धरावतो आ ग्रंथ होवा छतां ग्रंथकार खूब हळवाशभरी-रमूजभरी भाषानो वारंवार उपयोग करे छे, अने अध्येताना मनने बोझिल बनतुं अटकावे छे. तो हळवा मिजाजमां लखाएल आ रचनामां शृंगाररस-द्योतक वाक्यो पण एकाधिक वार अवतर्यां छे. जातिस्मरणज्ञाननी प्रमाणता सिद्ध करवा माटे बे उदाहरण तेमणे टांक्यां छे; एक कोई बाळक, पूर्वजन्मनी कामक्रीडाने वर्णवतुं; बीजुं पण पाटणना बाळकनु, दक्षिणापथना लक्ष्मीधर गाममां चतुर्मुख जिनप्रासाद होवाचं वर्णवतुं; ते पण बहु विचारोत्तेजक छे. वळी, ग्रंथकार ज आ अंगे स्पष्टता करे छे के "संवादोऽयं, न संवादाभासः, बालस्य विप्रतारणबुद्ध्याद्यभावात्". मतलब के ते युगमां पण जातिस्मरण धरावतां पात्रो विशे यशोविजयजी जेवा मेघावी साधु वाकेफ रहेतां हशे. जो आ कल्पना साची होय तो तेमनी वैज्ञानिकता परत्वे आदर उपजे. जैन आगमोना विविध पाठोनां उद्धरण तो आमां छे ज, साथे अन्य शास्त्रोना संदर्भो पण कर्ताए अनेक स्थाने टांक्या छे. उपरांत, चार्वाक, नैयायिक, वैशेषिक, सांख्य, बौद्ध, शून्यवादी, अद्वैतवादी वगेरे मतोनो, चिन्तामणिकार, वाचस्पति, धर्मकीर्ति, सुधर्मस्वामी वगैरे ग्रंथकारोनो, तेमज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520520
Book TitleAnusandhan 2002 07 SrNo 20
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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