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________________ 94 March-2002 दुहा०॥ गुण ग्यरुआ गुणवंतना, जे नवि बोलइ रंगि । परभवि दूखीआ ते थसइ, सरजइ दूबल अंग्य ॥४४॥ गुण गाइ गुणवंतना, ते सुखीआ संसार्य । परभवि सूरसूख भोगवइ, जिहा बहु अपछर नार्य ॥४५॥ जो हीत वंछइ आतमा, तो परनंद्या टालि । मुख्यथी मीठु बोलीइ, भटक न दीजइ गालि ॥४६।। सुगरूवचन संभारयु, करज्यु परउपगार । जईनधर्म आराधज्यु, व्रत वहइ ज्यु सिरि बार ॥४७॥ ढाल ७९ ॥ देसी० मेगल मातो रे वनमाहि वसइ० ॥ राग-मेवाडो ॥ बार वरतनि रे जे नर सि [र वहइ] [तस] घरि जइजइ रे कार । मनह मनोर्थ ते वली तस फलइ, मंदिर मंगल च्यार ॥४८॥ [बार वरतनि] रे जे नर सिर वहइ । आचली० ॥ भणतां गुणतां रे संपइ सुख मलइ, पोहोचइ [मनि त]णी आस । हिंवर हाथी रे पायक पालखी, लहीइ ऊच आवास । ४९ ॥ बार वरतनिं०॥ सुंदर घर्णी रे दीसइ सोभती, बहइनी बांधव जोड्य । बालिक दीसइ रे रमता बारणइ, कुटंबतणी कई कोड्य ॥५०॥ बा० ॥ ग्यवरी मइहइषी रे दीसइ दूझतां, सुरतरु फलीओ रे बार्य । सकल पदारथ मुझ घरि मि लह्या, थिर थई लछी रे नार्य ॥५१।। बा० ॥ मनह मनोर्थ माहारइ जे हतो, ते फलिओ सही आज । श्रीजिनधर्मनिं पास पसाओलइ, मुझ सीधां सही काज ॥५२॥ बा० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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