SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 72 March-2002 सुगर कहइ संभारीइ, सीलवंतनां नाम । ऋषभ कहइ नर ते भला, जेणइ जगी जीत्यु कांम ॥२१॥ शमशा०॥ गीरधुपूत्त कहीजइ जेह, ता वाहन भष्य कहीइ तेह । तास भष्यन नाम जे कहइ, तेहगें वाहन जे जगी लहइ ॥२२॥ तेहनिं वाहालुं स्यु वली होय, उतपति तास वीचारी जोय । ता वाहन भष्य केरो तात, तस बंधन रीपू जग वीख्यात ॥२३॥ तेहना बांध्या जे जगी लहइ, तास तणो स्वामी कुण कहइ । तेहनुं वाहन अतिबलवंत, तेणइ आंण्यु जगी जेहनो अंत ॥२४॥ तेहनि बंधी जे वश करइ, ते वहइलो मुगतिं संचरि(रइ)। जन्म मर्ण जरा नही यांहि, अनंत सुख नर पांमइ त्याहि ॥२५।। दहा० ॥ संपइ सुख बहु पांमीइ, जो वश कीजइ काम । सीलवंत जगी जेहवा, लीजइ तेहनां नाम ॥२६॥ ढाल० ॥चोपई ॥ (५५) ॥ शीलवंतनुं लीजइ नाम, तो मनवंछीत सीझइ काम । सीलवंतना पूजो पाय, रीध्य व्रीध्य सुखशाता थाय ॥२७|| सीलतणो जगी महीमा घणो, जग सघलो थाइ आपणो । सुर नर कीनर दानव देव, सीलवंतनी सारइ सेव ॥२८॥ सीलवंत संग्रांमि चडइ, ते कोंण नर जे सांहामो लडइ । नावइ सुरो साहामो धस्यो, सीलवंतनो महीमा अस्यु ॥२९॥ सीलवंतना पगर्नु नीर, तेणइ लेई छाटो आप शरीर । सकल रोगनो खइ जिम थाय, कष्ट कोढ कली नाहाठो जाय ॥३०॥ सती सुभद्रानी सुणि वात, जेहनो जग जाणइ अवदात । कुपि चालणि तांतणि तोलि, काढी नीर ऊघाडी पोलि ॥३१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy