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March-2002
सुगर कहइ संभारीइ, सीलवंतनां नाम । ऋषभ कहइ नर ते भला, जेणइ जगी जीत्यु कांम ॥२१॥
शमशा०॥ गीरधुपूत्त कहीजइ जेह, ता वाहन भष्य कहीइ तेह । तास भष्यन नाम जे कहइ, तेहगें वाहन जे जगी लहइ ॥२२॥ तेहनिं वाहालुं स्यु वली होय, उतपति तास वीचारी जोय । ता वाहन भष्य केरो तात, तस बंधन रीपू जग वीख्यात ॥२३॥ तेहना बांध्या जे जगी लहइ, तास तणो स्वामी कुण कहइ । तेहनुं वाहन अतिबलवंत, तेणइ आंण्यु जगी जेहनो अंत ॥२४॥ तेहनि बंधी जे वश करइ, ते वहइलो मुगतिं संचरि(रइ)। जन्म मर्ण जरा नही यांहि, अनंत सुख नर पांमइ त्याहि ॥२५।।
दहा० ॥ संपइ सुख बहु पांमीइ, जो वश कीजइ काम । सीलवंत जगी जेहवा, लीजइ तेहनां नाम ॥२६॥
ढाल० ॥चोपई ॥ (५५) ॥ शीलवंतनुं लीजइ नाम, तो मनवंछीत सीझइ काम । सीलवंतना पूजो पाय, रीध्य व्रीध्य सुखशाता थाय ॥२७|| सीलतणो जगी महीमा घणो, जग सघलो थाइ आपणो । सुर नर कीनर दानव देव, सीलवंतनी सारइ सेव ॥२८॥ सीलवंत संग्रांमि चडइ, ते कोंण नर जे सांहामो लडइ । नावइ सुरो साहामो धस्यो, सीलवंतनो महीमा अस्यु ॥२९॥ सीलवंतना पगर्नु नीर, तेणइ लेई छाटो आप शरीर । सकल रोगनो खइ जिम थाय, कष्ट कोढ कली नाहाठो जाय ॥३०॥ सती सुभद्रानी सुणि वात, जेहनो जग जाणइ अवदात । कुपि चालणि तांतणि तोलि, काढी नीर ऊघाडी पोलि ॥३१॥
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