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________________ अनुसंधान - १९ रहइनेमि मन-वचनिं पड्युं, राजुल देखी ते हडबड्यु । माहाभट मदनिं कीधो रंक, सही शरि पांम्यु सोय कलंक ॥९॥ लषणा नांमि जे माहासती, मन मइलइ चुकी स्युभगति । मंनह वचन काया थीर नही, ते नर सुखीआ थाइ कही ॥ १०॥ कुलवालुंओ मुनीवर जेह, माहातपीओ पणि कहीइ तेह । सीलखंडणा तेणइ करी, खिणम्हां दूरगति नारी वरी ॥११॥ एहेवो कांमतणो अवदात, सुणज्यु सहु शभा नरनाथ । तो अबलास्यु कस्यु सनेह, जाति जे देखाडइ छेह ॥१२॥ भोज मुज परदेसी जेह, सबल वटंब्या नारिं तेह | जमदगधनं नारिं नड्यु, राय भरथरी ते रडवड्यु ॥१३॥ ब्रह्मराय घरी चुलणी जेह, पोतइ पूत्र मरावइ तेह | गउतम ऋषिनी अहीला नार्य, अंद्र भोगवइ भुवन मझार्य ॥ १४॥ ए नारीनो जोय वीचार, जोता कांई नवी दिसइ सार । समझ्या ते नर मुकी गया, नवि समझ्या ते खुची रह्या ॥१५॥ अकल गई नरनी वली एम, जिहाथी प्रगट्या त्याहा बहु प्रेम । ऊतपति जोनी तुं आपणि, समझी मुके मती पाप्यणी ||१६|| मातपीतानिं युगिं वली, श्रुणी स्युक गयां बइ मली । जग सघलु जई तिहा उपनो, नांहानो मोटो एम नीपनो ॥१७॥ तो ते सांथिं स्यु वलि रंग, म करो नारी केरो संग | भोग करंता हंशा बहु, नरनारी ते सुणयु सहु || १८ || बेअंद्री पंचेद्री जेह, नव नव लाख कहीजइ तेह | मुनीष असंखि समुर्छम जांणि, भोग करंतां तेहनी हांणी ॥ १९ ॥ दूहा० ॥ हाणि न करता हंसनी, सीलवंतम्हां लीही । पणि वरला जगि ते वली, जिम पसुआंमां सीह ||२०|| Jain Education International For Private & Personal Use Only 71 www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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