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________________ 68 March-2002 संवल कहो किम दीजीइ, चोर तणइ वलि हाथि रे । पापी पोष वधारतां, दूख लहीइ बहु भाति रे ॥७४॥ चीत चोखु० ॥ भेल संभेल न कीजइ, नवी पुराणी मांहई रे । परभवि बहु दूख पांमीइ, कोण सखाई त्याहिं रे ॥७५॥ चीत० ॥ राजविरुध न कीजीइ, कीधइ किम सुख होय रे । वीष पीधि किम जिविइ, रीदइ वीचारी जोय रे ॥७६॥ चीत० ॥ कुडां तोल न कीजीइ, ओछां अदिकां माप रे । छल छबदिं धन मेलता, लागइ पोढुंअ पाप रे ॥७७|| चीत० ॥ मातपीता नवि वंचीइ, बांधव भगनी पूत्र रे ।। गांठि जुई नवी कीजीइ, एम रहइ छइ घरसुत्र रे ॥७८॥ चीत० ॥ दूहा० ॥ सुत्र संभालि राखीइ, वचन वडानुं मांन्य ।। व्रत चोथं हवइ संभलो, जे जगी मुगट समान्य ॥७९।। मृगकुलम्हां यम केशरी, वाहन मांहि तुरंग । तिम व्रतमां ब्रह्मव्रत वधू, क्यमेह न कीजइ भंग ॥८०॥ ढाल ५४ ॥ (५३)॥ देसी० वासपूय जिन पूण्यप्रकाशो० ॥राग-असावरी ।। तीर्थमांहा यम श्रीसेव॒जो, सुरपति मांहां जिम अंद्र । मंत्रमांहि जिम श्रीनवकार, गहइगणमांहा जिम चंद्र ॥८१॥ जल सघलामां जलधर मोटो, पंखीमांहां जिम हंसो । सर्पयोन्यमां सेष ज बलीओ, कुलमांहां ऋषभावंसो ॥८२।। परबतम्हा जिम मेर वखार्पु, ठाकुरमाहा जिम रामो । हनु वानरकुलम्हां अतीबलीओ, कीधां वसमां कामो ॥८३॥ कुजरम्हां अहीरावण मोटो, गढम्हा लंका कोटो । सूररथाना अस्व जबलीआ, भमता देता डोटो ॥८४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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