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________________ 43 अनुसंधान-१९ जीवदया कहइ किम पालीइ, अदिक आग्यना नर न्याहालिइ । जिनवचने तो पुजा थाय, मांनी आग्यना तेह दयाय ॥२३॥ तव तस मतनो बोल्यु खेव, एह अचेतन दीसइ देव । ए मुझनि स्यु करसि सूखी, देव खरो जे चेतनमुखी ॥२४॥ एने कनहइ(कहइ) चालइ सीधांति. कुमतिं तुझ कीधी छड् भ्रांति । समझीनिं करजे एकाति, अचेतन बइसइ ऊंची पांति ॥२५॥ कंदमुल करि मुद्रा झालि, वस्त वोहोरेवा चहुटि चालि । बेहु पदार्थ तेहनि आलि, नाग नगोदर मागे झालि ॥२६॥ ए मुद्राना महीमा थकी, मांग्यु आपइ थईइ सुखी । कंदमुलथी लहीइ गालि, कडको मारइ तेह कपालि ॥२७॥ दसविकालिकमांहां जे कां, मुर्यख सोय वचन नवि लऔं । चीत्रपूतली भीति जेह, माहामुनी नवि नरखइ तेह ॥२८॥ तेणइ नरखि जो होइ पाप, तो प्रतिमा पेखि पूण्य व्याप । ए द्रीष्टांत हईइ धारजे, जिन पूजि आतम तारजे ॥२९॥ थोडामांहि समझे घj, वारवार तुझ स्यु अवगणुं । दयामुल आज्ञाई धर्म, जिनशासनमां एह ज मर्म ॥३०॥ दूहा० ॥ मर्म न स[म]झइ बापडा, करता मिथ्यावाद । कुमतविर्षि जे धारीआ, स्यु कीजइ तस साद ॥३१॥ एक जिनप्रतिमा छंडता, एक मुकइ मुनीराय । एक नर वास ऊथापता, समोवसर्ण न सोहाय ॥३२॥ गुरु विन ज्ञान न ऊपजइ, भाव विन भगति न होय । नीर विनां किम नीपजइ, रीदइ वीचारी जोय ॥३३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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