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________________ अनुसंधान - १९ असर्ण भावना नर एम भावइ, नही मुझ कोय सखाई । मात-पिता कंता निं भगनी, को नवी राखइ भाई ॥ १० ॥ गुण० ॥ ध्यान धरो तो ऋषभदेवनुं, अवर सहु जंजालो । जिनना सर्ण विनां नवी छुटइ, सूरपति को (के) भुपालो ॥११॥ गुण० ॥ संसारनी ते भावइ भावना, जगि दीसइ जंजालो । एक नीर्धन निं एक धनवंता, चाकर निं भुपालो ॥१२॥ गुण० ॥ एक मंदिर बहु बालीक दीसइ, एक घरि नही संतांनो | एक मंदिर बहु रदन करंता, एक मंदिर बहु गांनो ||१३|| गुण० ॥ 23 एकत्व भावना मुनी एम भावइ, नही मुझ कोय संघांतो । आव्यो एकलो जाईश एकलो, ए जगमांहां वीख्यातो ॥१४॥ गुण० ॥ अनत्व भावना कहीइ पांचमी, तेहनो एह वीचारो । जीव अनि ए काया जुजूई, कांई नवी दीसइ सारो ॥ १५ ॥ गुण० ॥ जीव मुकी जाशइ कायानिं, काया केड्य न जायु । फोकट भारे थायु ||१६|| गुण० ॥ तुस्युनी गणी निं सहु पोषो, अस्युच भावना भेद कहु छु, सुणयो सहुअ सुजांणो । देही सदा ए छइ दूरगंधी, म करो कोय वखांणो ||१७|| गुण० ॥ आश्रव भावना भेद भणीजइ, जेणइ आवइ बहु पापो । माहामुनी वरते वेगी नीवारइ, न करइ आप संतापो ||१८|| गुण० ॥ संवर भावना भली वखाणुं, पातीग जेणइ रुधाइ । पांचइ अंद्री मुनी वश राखइ, तो घट नीर्मल थाइ ॥ १९ ॥ गुण० ॥ नोमी भावना कहु नीर्जरा, जे एव-इ त - हु- थाइ । कर्मु खपइ नर कईअ कालनां, वइहइलो मुगतिं जाइ ||२०|| गुण० ॥ लोक भावना चऊद राजनी, भावइ आपसरूपो । ए जीविं ते सहुइ फरस्यु, कीधां नव नव रूपो ||२१|| गुण० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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