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________________ श्री गौतमस्वामीनुं स्तवन - सं. मुनि जिनसेनविजयजी लींबडी ज्ञानभंडारनी हस्तप्रतमांथी आ स्तवन मळ्युं छे, तेनी लिपि तथा प्रतनी परिस्थिति जोतां आशरे सत्तरमा सैकामां लखायेल हशे तेवू अनुमान बांधी शकाय. पू. सिंहसूरिजीना शिष्य श्रीवीर नामना कोई साधु भगवंते आ स्तवननी रचना करी हशे तेवू छेल्ली कडीमांना उल्लेखथी कल्पी शकाय. (राग : प्रभाती) पहेलो गणधर वीरनो रे जिनशासननो शणगार, गौतमगोत्रतणो धणी रे गुणमणी रयण भंडार, जय करजो हो गौतमस्वाम, ए तो नवनिधि होय जस नाम, ए तो पूरे वांछीत काम, एतो सुररमणी केरो धाम जय.....० १ ज्येष्ठा नक्षत्रे जनमीयो रे गोबरगाम मझार, वसुभूति सुत पृथ्वीतणो रे मानव मोहनगार जय.....० २. अष्टापद लब्धि चड्यो रे वांद्या जिन चोवीश, जगचिंतामणी तिहा कही रे स्तवीया ए जगदीश जय.....० ३ पनरशें त्रण आगले रे खीर खांड घृत पूर, अमृत जास अंगूठडे रे, ऊग्यो केवल-सूर जय..... ४ । पचास वरस गृह वासमारे छद्मस्थे रह्या त्रीस, बार वरस लगें केवली रे प्रभु आउं बाणुं जगीस जय..... ५ दीवाली दिन उपनोरे प्रात समे केवलनाण, अक्षीणलब्धि तणो धणी रे नामे सफल विहाण जय.....० ६. गोयम गणहर सारिखा रे श्री विजयसिंहसूरीश, ए गुरु चरण पसाउले रे वीर नमो निशदिश जय....०७. इति : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520519
Book TitleAnusandhan 2002 03 SrNo 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages170
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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