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________________ 61 माटे रामकृष्ण शिवपार्वती वगेरे देवोनां वर्णन कविए ऊंडी अने उत्कट भक्तिथी भावविभोर थईने कर्या छे. आ काव्यनी शैली गौडी छे कारण के प्रत्येक पंक्तिमां वर्णानुप्रास आवे छे. आ अनुप्रास योजवामां कर्ताए पोताना कविकसबनी खूबी दर्शाववा प्रत्येक श्लोकमां जुदा जुदा वर्णोनो अनुप्रास योज्यो छे, जे आ काव्यनुं विशिष्ट लक्षण छे. ते उपरांत दीर्घ समासोनुं प्राचुर्य, ओज कान्ति वगेरे गुणोनुं प्राधान्य आ बधां गौड मार्गनां लक्षणो पण अहीं जोवा मळे छे. ए हकीकत छे के काव्यमां सळंग अनुप्रास योजवा माटे घणीवार कविने अप्रचलित के ओछा प्रचलित शब्दो योजवा पडे छे, जेमके राक्षस माटे आशरः, केतकीना छोड माटे जम्बालः, द्रोह (दूर) करनार द्रोढा, अने कामदेव माटे सूनास्त्र:. आने परिणामे आ काव्य व्याख्यागम्य बन्युं छे अने कर्ताने सद्नसीबे आ काव्यने सहृदयो माटे सहेलाईथी समजाय तेवुं करनार कृष्णपंडित नामना विद्वान टीकाकार, कवि जगन्नाथ पछी थोडा समयमां थई गया छे. तेमणे तेमनी 'दर्पण' नामनी अन्वर्थक व्याख्यामां आ काव्यना अधरा लागता प्रयोगोने विगतवार अने सारी रीते समजावीने भावको माटे उपकारक काम कर्तुं छे. ट्रंकामां, आ काव्यनो आस्वाद पूरेपूरो माणवा माटे टीकानी सहाय आवश्यक बनी रहे छे. काव्यना टीकाकारे 'दर्पण' टीकाना अंतमां पोतानो समय सांकेतिक भाषामा आ रीते जणाव्यो छे : गुणरत्नर्षियुक्ते प्रजापतिसमाह्वये । शाकेऽधिमासे भाद्राख्ये गीष्पतौ प्रतिपत्तिथौ । अश्वधाट्या दर्पणाख्या व्याख्या कृष्णेन निर्मिता ॥ शक संवत् १७९३ना अधिक भादरवा मासना पडवाने गुरुवारना रोज आ टीका रचाई छे. “Indian chronology "मां रजू थयेला टेबल नं. १० प्रमाणे ते दिवसे ई.स. १८७१ना ओगस्ट मासनी एकत्रीसमी तारीख आवे छे. 'अश्वघाटी काव्य' अने ते परनी दर्पण टीकाने समावता 'सुभाषितरत्नाकर' नी प्रथम आवृत्ति ई.स. १८७२मा प्रकाशित थई छे, ते परथी कही शकाय के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520518
Book TitleAnusandhan 2001 00 SrNo 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages292
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size15 MB
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