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________________ 252 'बोलो, शुं कामे आव्या छो....' मुनशीजी सीधा ज मुद्दा पर आवी गया. 'हुं भावनगरथी आव्यो छु. संस्कृतना विषय साथे बी.ओ.मां फर्स्ट क्लास आव्यो छु. आगळ भणवानी इच्छा छे, पण पैसानी तंगी....' हरिवल्लभे एक ज श्वासे आगमननुं प्रयोजन जणावी दीधुं. 'तमने स्कोलरशिप अने नोकरी बन्ने मळी जशे.' मुनशीजीओ हरिवल्लभना माथा परथी पहाड जेवडो भार हळवो करी दीधो. कनैयालाल मुनशीना ओक ज वाक्यथी हरिवल्लभना डगमगता पग स्थिर थई गया, महुवाना तेजस्वी छोकराने जाणे के मुंबईमा रहेवानी स्वीकृति मळी गई. पचास रूपियानी स्कोलरशिप, भारतीय विद्याभवनमां लेक्चररनी नोकरी, अंधेरीमा रहेवानुं अने आगळ भणवानु... दारुण गरीबीमां ऊछरेला एक तेजस्वी विद्यार्थीने आनाथी वधुं शुं जोईए ? 'हुँ बे पीरियड लेक्चर लेतो अने बाकीना समयमां भरातीय विद्याभवननी लाईब्रेरीमां बेसीने अभ्यास करतो.' अहीं सुधी कहीने हरिवल्लभ भायाणी सहेज अटके छे. पछी लाईब्रेरीनी समृद्धि विशे वात आगळ वधारे छे. 'ते समयमां मुनशीजीओ कलकत्ताना अक गृहस्थ पासेथी पचास हजार रूपियामां रेफरन्स लाईब्रेरी खरीदी लीधेली. अम.ओ., भणतो हतो त्यारे अने त्यार पछी पण में ए लाईब्रेरीनो घणो ज लाभ लीधो. ए लायब्रेरीमां बेसीने ज में संस्कृत, प्राकृत, अर्धमागधी, वेदान्त अने ब्राह्मण परंपरानां भाष्योनो अभ्यास कर्यो.' भारतीय विद्याभवनमां एम.ए.ना अभ्यासकाळ दरमियान हरिवल्लभना जीवनने नवो वळांक, नवी दिशा मळी. अेक संस्था जेटलुं काम करता जीवताजागता ज्ञानकोश समा मुनशीजीना ज्ञाननो लाभ तो अमने मळ्यो ज. उपरांत प्राकृत भाषाना विद्वान जैन मुनि जिनविजयजी साथे संपर्क थयो. बन्ने विद्वानोना मार्गदर्शन अने पोतानी महेनतने कारणे हरिवल्लभ अम.ओ.मां फर्स्ट क्लास फर्स्ट आव्या. _ 'अम.ओ. कर्या पछी संस्कृत साथे पीएच.डी. करवानो विचार करेलो पण मुनि जिनविजयजी साथे काम करवाना प्रबळ मोहने लीधे में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520518
Book TitleAnusandhan 2001 00 SrNo 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages292
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size15 MB
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