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________________ 219 थयां. ध्वनिमुद्रणो थयां. एना प्रोजेक्टनुं आयोजन करो तो लाखोनुं अनुदान अने लांबो समय जाय. परंतु भायाणीपरिवार के भायाणीकुळना अभ्यासीओना जूथे आ कार्य खूब ज ओछा खर्चमां अने ढूंका गाळामां कर्यु छे. आ बधी ज कामगीरी अने जवाबदारी माटे डॉ. भायाणीने कोई विशेष आर्थिक रकम क्यारेय अपाई नथी ! भविष्यमां ज्यारे पण कोई अभ्यासी गुजरातना लोकसाहित्य अने कंठ परंपराना अध्ययन, संशोधन, संपादननी गतिनो आलेख दोरशे, त्यारे जोई शकशे के दोढ-बे सदीथी आ प्रवृत्ति गुजरातमां चाले छे परंतु १९८४ थी १९९६ना बार-तेर वर्षमां जे काम थयुं छे, जेटलुं काम थयुं छे ते अगाउना कोई दशकामां नथी थयु. आ पछी.... ए भविष्य पर छोडीए. परंतु आ ऊपर जता आलेखनुं मूळ बिंदु ते डॉ. भायाणी. गुजराती लोकगीतोने कृष्णचरितना जीवनक्रमे गोठवी जे अभ्यास कर्यो तेनां तारणो डो. भायाणीए पेरीसनी आंतरराष्ट्रीय परिषदमां अंग्रेजी संशोधन-पत्ररूपे रजू कर्या ने एमां वात्सल्य-औदार्यथी माझं नाम पण सहलेखक रूपे मूक्युं छे. रामकथानां लोकगीतोनो में जैन, बौद्ध तथा अन्य भारतीय ग्रामीण अने आदिवासी परंपरा साथेनो अभ्यासलेख मूक्यो. ते भायाणीसाहेबने खूब गम्यो. एy मराठी भाषान्तर का.स.वाणी मराठी प्रगट अध्ययन संस्थाए १९९३मां, अंग्रेजी एशियन सोसायटी तथा शियाटल, अमेरिका खाते मळेली छठ्ठी इन्टरनेशनल कोन्फरन्स ओन अर्ली लिटरेचर इन न्यू इन्डोआर्यन लेनवेजीझमां प्रगट थयु. ७मी कोन्फरन्समां वेनिस-इटालीखाते मारो सरजू परनो लेख वंचायो अने प्रगट थयो. आ बधानो यश भायाणीसाहेबने. आ कोन्फरन्समां गयो, बधां मळ्यां ने मानप्रेमथी जोतो आवकारतां थयां त्यारे ज जाण्यु के ए बधुं ज भायाणीना विद्यार्थी होवाने कारणे ! साठपांसठ जेटला विदेशी विद्वानो, भाग्ये ज कोई एवं पेपर हशे, जेमां भायाणीनो उल्लेख न होय. कोई पण प्रश्न पर चर्चा उग्र बने, परंतु एमां कोई डो. भायाणीनो आधार टांके तो बधां ज शांत अने संमत. आ बधामां कोई एवो विद्वान नथी जेणे रूबरू के पत्रथी भायाणीसाहेबनी सलाह न लीधी होय. एमना मार्गदर्शननो लाभ न लीधो होय. भारतनो आ एक मात्र एवो ऋषि, जेने कोई पण देशी-विदेशी कंई पण पूछे के लखे के धोमधखता तडकामां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520518
Book TitleAnusandhan 2001 00 SrNo 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages292
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size15 MB
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