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________________ 218 ने एनां परिणाम प्रगट छे. परंतु अकादमीमांथी एक पण राती पाई लीधा वगर एमणे पदभजन सूचिकरणनी योजनामां जे कार्य कर्यु एनी जाण बहु ओछाने छे ! महम्मदभाई पछी डॉ. सुरेश दलाल आव्या. एमणे लोकसाहित्य समितिमां पण डॉ. भायाणीनी सेवा लीधी अने लोकसाहित्य समितिए १४ मणकामां समये-समये मळेली सामग्री मळी तेनी ग्रन्थ श्रेणी प्रगट करी हती तेने एम मूळ क्रममा पुनःमुद्रित करवाने बदले विषयानुसारी संपादित करी अभ्यासभूमिका साथे प्रगट करवानुं नक्की थयु. पांच हजार रचनाओने विषयानुसारी गोठववी गंजावर काम हतुं. अकादमीना ग्रन्थपाल श्रीकिरीट शुक्ले ते बीडं झडप्युं ने काम पूर्ण कर्यु. में विषयानुसारी अभ्यास भूमिका आपी. भायाणीसाहेब रजेरज वांची गया अने पूरकनोंध मूकता रह्या. भायाणीसाहेबने एमनां दादीमा गातां हतां ते सो सवासो पद ढाळ साथे याद. क्यां स्वर उपरनो ने क्यां नीचेनो तेनुं पूरुं ज्ञान. ए पोते गाय ए पछी पुत्री युवा गाय अने ते ढाळ ओ.के. थाय एटले हुं स्वरांकन करूं. परंतु एमां अनेक प्रश्नो, थाय. ताल कयो ? ए नक्की न थाय तो स्वरसमयमूल्य निश्चित न थाय. श्रीप्रवीणसिंह जाजोनी सहाय लीधी अने 'हरिवेण वाय छे', 'गोकुळमां टहूक्या मोर', अने 'झीणा झरमर वरसे मेह' संग्रहमां ९० जेटला पदभजन स्वरांकन तथा छंदबंध अने एना पृथक्करण साथे प्रकाशित थयां. डॉ. बलवंत जानी, डॉ. निरंजना शाह, श्रीप्रकाश वेगड अने श्रीकिरीट शुक्ल पासे कंठस्थ परंपरानां पद-भजन अने लोकगीतोना सूचिग्रन्थो प्रगट कराव्यां. डॉ. भगवानदास पटेलने आदिवासी साहित्य अने डॉ. निरंजन राज्यगुरुने संतवाणीना प्रोजेक्ट माटे प्रोत्साहन आप्युं, मार्गदर्शन आप्युं अने अकादमी तथा अन्य संस्था द्वारा प्रोजेक्ट माटेनी सहाय पण अपावी अने प्रकाशनोमां सहायभूत थया. डॉ. शांतिभाई आचार्य जेवा भाषाशास्त्रीए उत्तम शास्त्रीय संपादनरूप कंठप्रवाहनी कथाओ आपी तेमां पण केन्द्रमां भायाणी ज. विविध विधिविधानो अने कथाओने मूळभूत परिवेशमां रजू करीने तेनां निदर्शन योजीने परिसंवादो करवां अने ग्रन्थ प्रकाशन करवू, एनां प्रेरणा, सूचन, मार्गदर्शन पण एमनां. भावनगर, सुरेन्द्रनगर, डाकोर जेवा स्थळोए तो एमणे जाते आवीने ध्वनिमुद्रांकनो कराव्यां. आ योजनामां पंदर ग्रन्थ प्रकाशित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520518
Book TitleAnusandhan 2001 00 SrNo 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages292
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size15 MB
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