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________________ 214 ताळं वसाई गडे ए वात पर. एक वार्ता अमारा बन्नेना मनमां घोळाती हती. प्राकृतमा हती घणकाघणकीनी वात. ए परसोत्तम मासनी कथामां में पण सांभळेली जेमां घणको व्रत-उपवास न करवाथी बकरा तरीके जन्म्यो अने घणकी व्रत-उपवासना पुण्ये राजकुमारी तरीके जन्मी. कोई न होय त्यारे दादर ऊतरती कुंजरीने बकरो कहेतो : रुमझुमती राणी ने इच्छावर पाया ! परंतु एनो उत्तरार्ध अमने याद न आवे. एमां एक दिवस आ अमदावादना मे-जूनना काळा धोमधखता उनाळे मारा गुलबाई टेकराना क्वाटरनी बेल रणकी. थयुं अत्यारे कोण ? बारणुं खोल्युं तो भायाणी साहेब. तापथी लालचोळ. कंई पूर्छ ए पहेला ज आर्किमिडिझना शोधना उत्साहथी बोल्या : 'याद आवी गयुं बीजुं पद ए कहेवा आव्यो छु. बकरो : रुमझुमती राणी ने ईच्छावर पागा राजकुमारी : क्यो रे पिटिया तुने कुरमुर खाया ?' -आवं अनेक वखत बने. कंई याद न आव्युं तो कोयडो मननो छेडो न छोडे, ने जेवो एनो उकेल मळे तो तरत का पोस्टकार्ड तो क्यारेक फोन... छेक मिलेनियमना नवेम्बर सुधी आ उत्साह ! छेल्लु पोस्टकार्ड हतुं तेमां लखेलूं : रांदल मावडी रे रणे चड्यां मा सोळ करी शणगार. रणे चडवं हतुं तो शणगार शा माटे ? आमां कई कई देवीओ अने तेना कया कया अश्वो ? कया रंगना? रूबरू मळ्या त्यारे एमणे कडं : 'पाठ आम होवो जोईए रांदल मावडी रे रमणे चड्या मा, सोळ करी शणगार, गरबो रमणे चड्यो, एम कहीए छीए. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520518
Book TitleAnusandhan 2001 00 SrNo 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages292
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size15 MB
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