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________________ 209 ए हुलामणा नामे ज संबोधता) वातोमां जाम्या. बीजे दिवसे गुजरात कोलेजथी सीधो युनिवर्सिटी भाषाभवनमां गयो ने भायाणी साहेबने मळ्यो. एमणे पूछ्यु : 'पिएच.डी. माटे क्यो विषय विचारो छो ?' 'नवलकथा पर काम करवू छे. सुरेन्द्रनगरमां प्रि. वाय.डी.भावेना मार्गदर्शनमां नवलकथा परना केटलाक महत्त्वना अंग्रेजी ग्रन्थो हुं वांची गयो 'पण एमां संशोधन करवानो अवकाश केटलो ? वळी तमे पोते पण वार्ताओ-नवलकथाओ लखो छो. ए लखता रहो. परंतु विशेष अभ्यास माटे मध्यकालीन साहित्यनो विषय लो. एमां संशोधनने अवकाश छे.' 'परंतु एना इतिहास सिवाय बीजुं में वांच्यु नथी, खास तो कृतिओ.' _ 'तो हवे वांचो.' भायाणीसाहेब बोल्या; 'हुं तो मारा मनमां निश्चित करेला छे, ते विषयो पर ज काम करावं छु. शामळ पर, रास पर, चंद्रचंद्रावळी पर जानी, भारती झवेरी, हीराबेन पाठक पासे काम कराव्यु. हवे मारा मनमां मध्यकालीन गुजराती प्रेमकथाओ पर ज कोईक पासे काम करवानुं नक्की थई गयुं छे. तमे एना पर काम करो. तमने ए काम गमशे. सर्जक तरीके तो तमे पोते ज प्रेमकथा पर काम कर्यु, कृतिना रूपमां. 'दग्धा' नवलकथामां तमे दग्ध एटले पूर्ण एवं व्यक्तित्व बंधायुं होय, ए- दाम्पत्य दग्ध एटले असफळ-कजळेलुं रहे छे, केमके, दरेक पुरुषने पोते घडी शके, टांकणुं पाडी शके पोतानुं एवी पत्नी जोईए छे, तेथी पूर्ण व्यक्तित्व साथे दाम्पत्यनो मेळ बेसतो नथी - आवा थीम पर काम कर्यु छे. आगळना काळना लेखकने पण ए रीते ज पोताना काळनी समस्याने वाचा आपवानी होय छे.' 'परंतु ए कथाओ तो चमत्कारपूर्ण बाह्य घटनाओमां राचती होय छे. एमां परंपरा अने रूढ माळखां होय....' 'ए आवे क्यांथी ? तत्कालीन परिस्थिति अने चित्तमांथी के बीजेथी? शा माटे अमुक कथाओ ज वारंवार रचाई ? मात्र कथा तरीके रोचक हती माटे ? तो आगळनी कृति हती ज. भाषा ने समाज खास बदलाया न हतां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520518
Book TitleAnusandhan 2001 00 SrNo 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages292
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size15 MB
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