________________
205 ऊंडी जाणकारी-आ बधुं प्रस्तुत कृतिमां ठांसी ठांसीने भर्यु छे. इच्छित अर्थ काढवा माटे संस्कृतना ओछा जाणीता नियमोनो उपयोग कर्यो छे तेम जुदा जुदा न्यायोनो पण आश्रय लीधो छे. 'पदैकदेशे पदसमुदायोपचार' नियमनो लाभ लइ 'यो'नो अर्थ 'योगी' को छे (पृष्ठ १८४) अने ‘पदान्ते आवता ए-ओ पछी अकारनो लोप थाय छे' ए नियम आकारने पण लागू पाड्यो छे (पृ. १८२) स्थाने स्थाने नियम, न्याय के दृष्टान्तो द्वारा आधार रजू करवानुं ग्रन्थकार चूक्या नथी. प्रस्तुत कृति उच्च कोटिनो साहित्यविनोद आपी जाय
कृतिना कर्ता शुभतिलकोपाध्याय विशे माहिती संशोधके आपी नथी.
पृ. १८४ पर प्रथम शब्द 'इत्यत्र' छे, पाठांतरमा 'इत्याद्यत्र' छे. अने ए आधारभूत प्रतिमां छे. ए पाठ वधु पसंद करवा जेवो गणाय. पृ. १८७ उपर 'न तु योनः....' वगेरे पाठ छे त्यां 'ननु' होवानो संभव छे... - आ अंकमां प्रूफवाचननी क्षतिओ ओछी छे, छतां क्यांक अर्थबोधमां बाधक बने एवी क्षतिओ रही गई छे. पृ. १७५ पर 'चिदात्मदर्श' छे, 'चिदात्मादर्श' जोइए. पृ. १८८ पर पांचमा फकरामां ‘वाखाकाशे' छपायुं छे, ते 'वाटवाकाशे' हशे एवं लागे छे.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org