SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १. वाचक उमास्वातिनां बे पद्य प्रसिद्ध जैन ग्रन्थकार श्रीहरिभद्रसूरिजीए रचेल पञ्चाशकप्रकरण नामे एक महाग्रन्थ रच्यो छे, जे आजे अपूर्ण अवस्थामां प्राप्त छे. आ ग्रन्थना छट्ठा प्रकरण (स्तवविधिप्रकरण) नी ४५ मी गाथामां तेओ 'वाचक' शब्द वडे उमास्वाति महाराजनो उल्लेख आ प्रमाणे करे छे : टूक नोंध " वायगगंथेसु तहा एयगया देसणा चेव" ॥ अर्थात्, “वाचकजीना ग्रन्थोमां पण आ संबंधी देशना - प्रतिपादन मळे ज छे. " 1 तथा विजयशीलचन्द्रसूरि अहीं 'वाचक' पदथी उमास्वाति ज समजवाना छे. ते वात, आ गाथानी टीकामां, नवाङ्गी वृत्तिकार श्री अभयदेवसूरिजी आ प्रमाणे नोंधे छे : " तथा वाचकग्रन्थेषु; वाचकः पूर्वधरोऽभिधीयते, स च श्रीमान् उमास्वातिनामा महातार्किकः प्रकरणपञ्चशतीकर्ताऽऽचार्यः सुप्रसिद्धोऽभवत्, तस्य प्रकरणेषु..... एतद्गता - द्रव्यस्तवविषया देवशाप्ररूपणा. तथाहि -. आटलं कहीने वृत्तिकार अहीं उमास्वातिजीनां रचेलां बे संस्कृत पद्यो टांके छे : "यस्तृणमयीमपि कुटीं कुर्याद् दद्यात् तथैकपुष्पमपि । भक्त्या परमगुरुभ्यः पुण्योन्मानं कुतस्तस्य ? ॥” "जिनभवनं जिनबिम्बं जिनपूजां जिनमतं च यः कुर्यात् । तस्य नरामरशिव सुखफलानि करपल्लवस्थानि ॥" Jain Education International आ उपरथी मानी शकाय के उमास्वाति महाराजे जिनपूजाना विषयने केन्द्रमां राखीने, तेमने सिद्ध एवा आर्यावृत्तमां, कोई ग्रन्थ रच्यो होवो जोईए, जे अभयदेवसूरिजीना समयमां (विक्रमना बारमा शतकना पूर्वार्धमा ) प्राप्त तेमज प्रसिद्ध होवो जोईए. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520518
Book TitleAnusandhan 2001 00 SrNo 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages292
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy