SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 106 अवशिष्ट रहेला अन्य प्राचीनतम ग्रंथोमां सूर्यप्रज्ञप्ति अने चंद्रप्रज्ञप्ति ग्रंथो पण छे. एमां छे तेवो विषय चर्चनार ब्राह्मणीय पुरातन ग्रंथ वेदांग-ज्योतिषमां जोवा मळती केटलीक विभावनाओ आ बन्ने ‘प्रज्ञप्ति' ग्रंथोमां पण समांतररूपे मळी आवे छे. तेमां पछीना निर्ग्रन्थ ग्रंथोमां उल्लिखित अने वर्णित 'जंबूद्वीप' अने बे सूर्य, बे चंद्र अने ८८ ग्रहोनी वात तो छे, परंतु ऊर्ध्वलोक अने अधःलोकना निर्देश (त्यां संदर्भप्राप्त न होवाथी ?) मळता नथी. एटले जिन पार्श्वना संप्रदायमां संपूर्ण लोक, केतुं कल्पन हतुं तेनो अंदाज मेळवी शकातो नथी. अर्हत् पार्श्वना निर्वाण पछी थोडाक दशकाओमां ज, परिभ्रमण करी उपदेश देनार अर्हत् वर्धमान- 'लोक' विशे शुं मानवू हशे ? तेओ 'लोक'ना तेमज 'नरक'ना अस्तित्वमां मानता अटलुं तो आचारांगना प्रथम स्कंधमां सचवायेला तेमना पोताना ज उद्गारोमां मळता ढूंका शा निर्देश थकी जाणवा मळे छ : से आतावादी, लोगावादी, कम्मावादी, किरियावादी । - आचारांग १.१.३ अने एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु नरगे... -आचारांग १.३.२५. परंतु अहीं पण लोकना स्वरूप विशे तेमनो केवो विभाव हतो तेनी कोई विगत मळती नथी. आचारांग पछीना प्राचीनतर अने जेनो जूनो भाग मौर्ययुगथी अर्वाचीन नथी एवा ग्रंथोमां सूत्रकृतांग, दशवैकालिक अने (बृहद्) कल्पसूत्रमा पण ए विशे स्पष्टता करता कोई उल्लेखो जडता नथी. परंतु ए ज काळना उत्तराध्ययनसूत्रमा अर्हत् पार्श्वना शिष्य केशी कुमारश्रमण अने अर्हत् वर्धमानना पट्टशिष्य गौतम वच्चेना श्रावस्तीमां थयेला संवादमां केशीए मुक्ति पामेल जीव, पहोंचवामां दुष्कर एवा, लोकाग्रे रहेल ध्रुवस्थान पर केवी दशामां जाय छे ते विशे प्रश्न करतां गौतमे उत्तर आपेलो के भवगतिनो नाश करी मुनि अनाबाध शिव-स्थिति प्रति लोकाग्रे रहेला स्थानमां शाश्वत वास करे छे. तेनो इत्यादि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520518
Book TitleAnusandhan 2001 00 SrNo 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages292
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy