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________________ 105 तेनो क्रमशः कई रीते विकास थयो छे, ते संबंधमां आगमोना निरीक्षण अने त्यां थयेलां विधानोना परीक्षण अने क्यारेक अर्थापत्ति द्वारा प्राप्त थती माहिती परथी अमुकांशे अंदाज । क्यास नीकळी शके छे. ए स्रोतमां सौ पहेलां आवे अर्हत् पार्श्वना संप्रदायमां रचायेला, मूळे चौद पूर्व एवा अभिधान-प्राप्त ग्रंथसमूहमांथी, वर्तमाने एना अल्पांशे ज अवशिष्ट रहेला हिस्सा अंतर्गत, ऋषिभाषितानि अत्यंत महत्त्वनो ग्रंथ छे : तेमां 'लोक' शब्दनो उल्लेख प्रश्नोत्तरी ढांचामां स्वयं अर्हत् पार्वे करेलो छे, जेनो शब्दो परथी महाराष्ट्री प्राकृतना विकारने दूर कर्या बादनो असली अर्धमागधी भाषा अनुसारे पाठ नीचे मुजब छे : १. केऽयं लोगे? २. कतविधे लोगे ? ३. कस्स वा लोगे? ४. के वा लोग भावे ? ५. केन वा अटेन लोगे पव्वुचती ? पासेन अरहता इसिना बुचितं १. जीवा चेव अजीवा चेव । २. चतुविधे लोगे विआधिते-दव्वतो लोगे, खेत्ततो लोगे, कालतो लोगे, भावतो लोगे । ३. अत्त भावे लोगे समित्तं पडुच्च जीवानं, लोगे निव्वंत्ति पडुच्च जीवानं चेव अजीवानं चेवं । ४. अनादिए अनिधने पारिणामिते लोकभावे । ५. लोकतीति लोको । -इसिभासियाई, अ. ३१ आ प्रश्नोत्तरीमा 'लोक'ने अनादिनिधन पण परिणमनशील कह्यो __ छे: जो के एनुं स्वरूप केतुं छे तेनो निर्देश नथी... ___ अर्हत् पार्श्वना संप्रदायमां संगुंफित अने अर्हत् वर्धमानना संप्रदायमां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520518
Book TitleAnusandhan 2001 00 SrNo 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages292
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size15 MB
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