________________
103 श्रीगौतमस्वामीनी सज्झाय
__ सं. मुनि धर्मकीर्तिविजय
एक ओगणीसमा सैकाना ह.लि.चोपडामांथी उतारेली आ सज्झाय छे. आ अप्रगट होवाथी अहीं आपी छे. छेल्लु पद "सेवक लखमी पाया रे'' ए उपरथी लखमी (लक्ष्मी) विजयजी नामना साधुए आनी रचना करी हशे तेम लागे छे. पहेली कडीमां 'धूनी धामे मोटी मामे'नो स्पष्टार्थ मारी समजमां आवतो नथी. परंतु "गौतमना नामनी धून लगावे तो, अथवा गौतमना नामनी धूणी धमावे तो मोटी कीर्ति (मने ?) मळे" एवो कांइ भाव होइ शके.
गौतम नामे ठामो ठामे नवनीध गामो गामे रे । धूनी धामे मोटी मामे कीरत कमला पामे रे.... १ पेहेर फाली नीत दीवाली पाट धरो पट साली रे चोखा थाली निज मन वाली जाप जपो जपमाली रे... २ कहे रे माता सुण रे पूता कांइ धरो मन चिंता रे गुरु गुणवंता ध्यान धरता समरो श्रीभगवंता रे.... ३ सूरी सिरोमण वांदी दिनमण वीर चरण चित लाया रे इंद्रभूति शासन चिंतामण सेवक लखमी पाया रे.... ४
इति श्रीगौतमसज्झाय ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org