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________________ 102 श्रीपार्श्वनाथगीत ॥ सं. मुनि जिनसेनविजय फुटकल हस्तलिखित पानां फेंदतां सांपडेलुं आ गीत घणुं प्राचीन न होय तोय प्रसादमधुर तो छे ज. आरतीना ढाळमां बनेल आ गीतना कर्ता 'चन्द्रोदय' नामक कोई कवि होय, तेवुं अनुमान, गीतनी अंतिम पंक्ति परथी थाय छे. रचना - समय १९मो शतक होय तेवुं मानवा मन ललचाय खरुं. श्रीपार्श्वजिनगीत | जय शिव ॐकारा - ए देशी ॥ जय जय जनतारक हे जगदाधारक हे जय जय कमठतपोमदभंजक भुजगोद्धारक हे जय जय जय जय जय जिनदेव ॥ १ ॥ जय जय सकलसुरासुरसेवितजय जगदीश्वर हे । जय जय भवनिर्विण्णजनाश्रितचरणेंदीवर हे जय ४ जिनदेव ॥ २ ॥ जय जय जन्मजरामरणोत्कटसंकटवारण हे । जय जय दुरितनिदाघविघातनघनसाधारण हे जय... ॥ ३ ॥ जय जय लोकालोकविलोकनकेवललोचन हे जय जय भव्यसमूहसरोरुहबोधविरोचन हे जय.... ॥ ४ ॥ जय जय कनकरजतमणिवरणत्रयमध्यासित हे । जय जय मरकतनिचितहरितकरनिकरोद्भासित हे जय... ॥ ५ ॥ जय जय चारुविहारपवित्रीकृतभुवनोदर हे । जय जय मधुररणत (रणित) वरदुंदुभिभणितयशोभर हे जय... ॥ ६ ॥ जय जय वसुधामंडलमंडन वामानंदन हे । जय जय दुर्मतवननि: कंदन नयनानंदन हे जय.... ॥ ७ ॥ जय जय वीतराग रागाद्यपरिवारविदारण हे । जय जय बोधिरूपचंद्रोदयनिरुपमकारण हे जय... ॥ ८ ॥ इति श्रीपार्श्वेश्वरस्तुतिः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520518
Book TitleAnusandhan 2001 00 SrNo 18
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages292
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size15 MB
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