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________________ अनुसंधान - १७• 223 लगा । इस प्रकार उनकी दृष्टि से मैं ओझल जैसा हो गया । दीर्घान्तराल के बाद जब वे एल. डी. इन्स्टीट्यूट, अहमदाबाद में डायरेक्टर पद पर प्रतिष्ठित थे, तभी मेरे छोटे भाई ने जयपुर से B. I. M. S. की उपाधि प्राप्त की । गुजरात सरकार ने उसी समय जामनगर में एक आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय की स्थापना की, जो भारत में अपनी शैली का प्रथम विश्वविद्यालय था । मैं चाहता था कि हमारे भाई को यदि जामनगर के उक्त विश्वविद्यालय में किसी भी प्रकार प्रवेश मिल जाय, तो वह वहाँ अच्छी प्रगति कर सकेगा । अतः मैंने उसके लिए श्रद्धेय पं. मालवणियाजी से आशीर्वाद माँगा और उनकी अप्रत्याशित चमत्कारी कृपा से वह उक्त विश्वविद्यालय का रिसर्च स्कालर ही नहीं, कुछ समय बाद प्राध्यापक भी बन गया और आज वह वरिष्ठ यूनिवर्सिटी प्रोफेसर तथा रसायनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष के रूप में कार्यरत है, साथ ही यूनिवर्सटी होस्पिटल का अधीक्षक एवं लोकप्रिय - उदार सहृदय चिकित्सक भी । पूज्य मालवणियाजी मधुरभाषी, सरल, उदार - हृदय एवं सज्जनोत्तम व्यक्ति थे । साधन विहीन छात्र-छात्राओं के लिए तो वे कल्पवृक्ष ही थे । जैन-बौद्ध दर्शन के शोध क्षेत्र में तो उन्होंने मौलिक कार्य किए ही, सामाजिक नव जागरण के क्षेत्र में भी उनके योगदानों को भुलाया नहीं जा सकेगा । प्रज्ञाचक्षु पं. सुखलालजी संघवी, प्रो. महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य एवं पं. दलसुख भाई मालवणियाजी जैन दर्शन के क्षेत्र की ऐसी रत्नत्रयी थी, कि जिसका अपना विशिष्ट प्रभावी युग था । सच्चे अर्थ में ये तीनों महारथी युग-प्रधान थे और उस कालखण्ड में उन्होंने जैन- दर्शन की ऐसी सार्वजनीन व्याख्याएँ प्रस्तुत कीं, जिनके कारण एशिया में प्रथम समझी जाने वाली बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी जैन दर्शन का प्रधान केन्द्र बन गया । आचार्य हरिभद्रसूरि भट्ट अकलंक, विद्यानन्दि एवं हेमचन्द्र जैसे महान आचार्यों को उन्होंने राजमहलों से लेकर झोपड़ों तक लोकप्रिय बना दिया और सामान्य जनता का भी उन्हें कण्ठहार बना दिया । राष्ट्रसन्त आचार्य श्रीविद्यानन्दजी मुनिराज उनके व्यक्तित्व एवं अगाध निर्भीक पाण्डित्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520517
Book TitleAnusandhan 2000 00 SrNo 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
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