SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कौशिक : एक अप्रसिद्ध वैयाकरण ___- नीलाञ्जना सु. शाह पाणिनीय धातुपाठ परना वृत्तिग्रंथोमां, जे केटलाक अप्रसिद्ध वैयाकरणोना मतना उल्लेखो मळे छे, तेमांना एक कौशिक नामना वैयाकरण छे. तेमणे पाणिनीय धातुपाठ पर वृत्ति लखी होवानुं मनाय छे.' तेमनी ए वृत्ति हाल उपलब्ध नथी, पण तेमना केटलाक मतोनो उल्लेख क्षीरस्वामीकृत 'क्षीरतरंगिणी' (ई.स.नी अगियारमी सदी) 'दैव' · परनी 'पुरुषकार वृत्ति' (ई.सनी तेरमी सदी) अने सायणकृत 'माधवीया धातुवृत्ति' (ई.स.नी चौदमी सदी)मां मळी आवे छे.* तेमना धातुसूत्रो विशेना मत सहुप्रथम आपणने क्षीरतरंगिणी (क्षीत)मा उपलब्ध थाय छे तेथी तेओ अगियारमी सदी पहेला थई गया हशे ए चोक्कस छे. तमना धातुओ विशेना आ मतोने 'क्षीत'ना क्रमानुसार अहीं दर्शाव्या छे जेथी एक समर्थ धातुवृत्तिकार तरीकेनी तेमनी प्रतिभानो परिचय संस्कृत व्याकरणशास्त्रना अभ्यासीओने थाय. १. दध धारणे । क्षीत (पृ. १५).. 'कौशिकस्तु दद धारणे दध दाने इति पाठं व्यत्यास्थात् । ददते मणिम्, दधते धनमर्थिभ्यः इति' । क्षीरस्वामी लखे छे के सामान्य रीते मोटा भागना धातुपाठोमां 'दद दाने अने दध धारणे होय छे तेने बदले कौशिक 'दद'नो अर्थ 'धारणे' करे छे अने 'दध'नो 'दाने' करे छे. कौशिकना मतना समर्थनमा जे 'ददते मणिम्' एवं वाक्य क्षीरस्वामीए एक्युं छे ते पूरुं वाक्य 'निरुक्त'मां मळे छे तेमां दद धारणेना समर्थनमा 'अक्रूरो ददते मणिम्' । 'विश्वे देवाः पुष्करे त्वाददन्ता' (ऋ. ७. ३३. ११)-आ बने वाक्यो आप्यां छे. टीकाकार दुर्गे पण आ बाबतनुं समर्थन करतां कडं छे : लोकेऽप्यं ददतिर्धारणार्थे भाष्यते । माधवीया धातुवृत्ति (माधावृ पृ. ५५)मां आ ज धातुसूत्रना संदर्भमां सायण लखे * युधिष्ठिर मीमांसक (सं)क्षीरतरंगिणी (बहालगढ, हरियाणा) द्वितीय आवृत्ति, सं. २०८२; युधिष्ठिर मीमांसक, दैव-पुरुषकारवार्तिक, अजमेर, प्रथम संस्करण, सं. २०१९; द्वारिकादास शास्त्री, माधवीया धातुवृत्ति, वाराणसी, द्वितीय संस्करण, १९८३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520517
Book TitleAnusandhan 2000 00 SrNo 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy