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अनुसंधान-१७.161
अने प्राचीन विभाषा 'वाराटी'नुं स्मरण करावी जाय छे. आगळ जोडेलो 'हुसेनी' शब्द बतावे छे के मुस्लिम उस्तादो द्वारा कंई नहीं तो ये मोगल जमानाथी नवा रागो बनावी तेमां सर्जकनुं व्यक्तिगत अरब्बी वा फारसी अभिधान जोडी देवानी प्रक्रिया = प्रथा चालु थई गयेली. वर्तमाने प्रचलित 'विलासखानी तोडी', 'हुसैनी कानडा', 'हुसैनी यमन' वगेरे आवी प्रक्रियाना फळरूपे उद्भवेलां छे. 'मल्हार' राग आजे पण. ए ज नामे ओळखाय छे; पण मध्यकालीन संगीतशास्त्रोमां 'विभाषा' (रागिनी) दर्शक नाम 'मल्लारी' मळे छे. अलबत्त प्राचीन संगीतशास्त्रोमा आवतां ए ज (के तेनां पूर्वज समान) नामवाळा रागो, मोगल युगना जैन साहित्यना उपर्युक्त रागो, अने आजनां ए ज (के पछी तन्निष्पन्न) नामो धरावता रागोनी स्वरावली तेम ज संचार एक या समानरूपी हशे के केम तेनो विशेष विगतोनी प्राप्ति न थाय त्यां सुधी निर्णय करवो मुश्केल छे.
अनुसंधान 'अंक १०'मां मुनिवर महाबोधिविजय द्वारा संपादित तपागच्छीय मुनि पुण्यहर्ष विरचित 'लेखश्रृंगार' (ईस्वी. १५८२)मां पण थोडांक रागनामो मळे छे : जेमके 'असाउरी' (हिं. आसावरी), 'मधुमाध' (हिं. मधुमाधसारंग, कर्णाटकी संगीतनो राग 'मध्यमादि'), 'देसाख' (देशाख्य, एटले के हिं. देश), 'मालवीगुडु' (कर्णाटकनो मालवगौड), 'धन्यासी', 'गोडी', (गौडी) अने 'गुडीधन्यासी' (गौडधन्यासी). .
(२) 'अंक ३'मां मुनिवर विमलकीर्तिविजय द्वारा वि.सं. ११६५ (ईस्वी ११०९)मां भरुचमां राणी श्राविकाए पौर्णमिक धर्मघोषसूरि पासे धारण करेल द्वादशव्रत संबंधनुं प्राकृतमां मळी आवेल वर्णन विरल वस्तु छे. आ प्रकारना थोडाक दाखला आ अगाउ प्रकाशमां आवेलां. जेमके छाडा श्रावके सं. १२१६ (ईस्वी ११६०)मां मानतुंग (बृहद्गच्छीय ?)पासे, सं. १२५४ (ईस्वी ११८८)मां रत्नादेवी श्राविकाए भद्रगुप्तसूरि पासे, ए ज रीते ए मध्यकाळमां श्रीयादेवी श्राविकाए (भद्रगुप्तसूरि पासे ?), यशोमती श्राविकाए भद्रबाहुसूरि पासे, अन्य कोईए चंद्रसूरि पासे, वगेरे. (मो Catalogue of Palmleaf manuscripts in the Santinātha Jain Bhandara, Cambay, Pt. 2 GOS. 149, Comp. Muni Punyavijaya, Baroda 1966, pp. 218220.)
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