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________________ अनुसंधान-१५ • 75 पंडित तत्त्वविजयगणि कृत हरीआली ॥ पंडित कहयो अर्थ विचारी ए हरीआली कामणगारी । नारी निरुपम तेह ज दीसई देखी नरनारीनुं मनडुं हीसइ ॥१॥ दीसइं नानी गुणमणि-खाणी राय-राणे तेहनि सहू मानी । बइ नारि मलीनइं नर नीपायो तेहनि नरिं निजवंश दीपायो ॥२॥ तेहनो वास अछई वनमांहिं ऊभी अहनिशि रहइ उच्छाहिं । आदरमान बहु तेहनि देई जग सघलई मानि कर लेई ॥३|| कृशोदरीनई बहु पुत्र प्रसवइं पार नहीं तेहनां पुत्रनो पुहवइं । पायविहूनी(णी)करविहूणी पुरण आस करइ ते सहूनी ॥४॥ जेणइ ते नारी समीपइं न आवई ते नरनि कोई नवि बोलावई । तेहस्युं जे घj नेह लगावइं सुख संपति बहूली ते पावइं ॥५॥ च्यारि नारि एहवो पणि तेहनि नर सेवई छई अहनिशि जेहनिं । प्रगट बाल नवि बोलई कहीइं आण अखंडित सहू नीरवहीइं ॥६॥ सात दिवसनी अवधि कहयो नहीतर गरव कोइं मत वहयो । वाचक श्रीजसविजयनि सीसिं तत्त्वविजय कहई मनह जगीसिं ॥७॥ इति श्री हरीयालीया संपूर्णम् ॥ सकल पंडित शिरोमणि पंडित श्री १९श्री तत्त्वविजय ग. । तद्भातृ गणि श्री ५श्रीलक्ष्मीविजय शिष्य मु. प्रेमविजयेन लिपीचक्रे । श्रा. रेही तत्पुत्री बाई देव पठनार्थम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520515
Book TitleAnusandhan 1999 00 SrNo 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages118
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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