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अह तेसि सिवपुरीए गयाण सयलो वि मोहनरनाहो । कम्मपरिणाम - वसुहाहिवो न प्पहवए किं पि ॥२४७॥ न य दुट्ठकम्मबीया इय ते पुणरवि उवेंति संसारो । चिट्ठेति पुणो सासयअणंतसुहसायरगय त्ति ॥ २४८॥ चउसु वि गइनयरीसुं इय न सुहं अत्थि किं पि संसारे । कहियमिणं लेसेण अंतरबहिरंगवयणेहिं ॥२४९॥ वित्थरओ पुण नियमइ विसेसओ बुहयणेण नेयं ति । इय जइ तुमे वि इच्छह भो भविया सासयं सोक्खं ॥ २५०॥ ता मोहरायचक्कं अवियक्कं सयलमवि दलेऊण । आराहिउं चारित्तधम्मरायस्स बलमखिलं ॥२५१॥ गंतूण सिवपुरीए अणुभुंजह सुहसयाई अणवरयं । इच्चाइ बहुवियप्पं जिणवर- वयणं सुणेऊण ॥ २५२ ॥ संजायभवविराओ विहेउ सुत्थं नियस्स रज्जस्स । गेण्हइ पयावसूरोऽवणिप्पहू चरणमणवज्जं ॥ २५३॥
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