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________________ षड्दर्शन-परिक्रमः गूर्जर अवचूरि सह - सं. मुनि कल्याणकीर्तिविजय भूमिका षड्दर्शन-परिक्रमनी आ प्रत वर्षोथी मारा परमगुरुभगवंत पू.आ. श्रीविजय सूर्योदयसूरीश्वरजी म.ना संग्रहमा हती । आगमप्रभाकर पूज्य मुनि श्रीपुण्यविजयजी महाराजे आ प्रत जोतां कहेलुं के 'आ प्रत नवीन अने अप्रकाशित छे माटे तेनुं संपादन प्रकाशन थर्बु जोइए।' वर्षों पछी मारा पू. गुरुभगवंत द्वारा आ प्रत मारी पासे आवी । तेनुं यथामति संपादन करी अहीं रजू करेल छे। नाम प्रमाणे ज आ ग्रंथमा छए दर्शननो सामान्य परिचय आपेल छ । षड्दर्शनसमुच्चयमा १. बौद्ध २. नैयायिक ३. सांख्य ४. जैन ५. वैशेषिक ६. जैमिनीय अने ७. लोकायत (नास्तिक), आ क्रमे दर्शनोनुं निरूपण थयुं छे, ज्यारे आ ग्रंथमां १. जैन २. मीमांसक ३. बौद्ध ४. सांख्य ५. शैव (न्याय-वैशेषिक) अने ६. नास्तिक आ क्रमे दर्शनोनू निरूपण छे. । षड्दर्शनसमुच्चयना बौद्ध दर्शनना श्लोक ५ तथा ८ अने आ ग्रंथना श्लोको २३ तथा २८ समान छ । ते सिवाय पण बन्ने ग्रंथोना विषय-निरूपणमां घj साम्य छे. छतां आ ग्रंथमां दरेक मतना भिक्षुओर्नु तथा तेमनां वस्त्र पात्र आचार व.नुं वर्णन कर्यु छे जे षड्दर्शनसमुच्चयमां नथी मळतुं । दर्शन विषय श्लोक जैन तत्त्वो, प्रमाण, श्वेतांबर - दिगंबर साधुओनी ओळख तथा दिगंबरोनी मान्यता। २ थी १३ मीमांसक ___मीमांसकोना कर्म-ब्रह्म एम बे प्रकार, प्रमाण, मुक्ति नी व्याख्या तथा तेओना द्विजो व.नुं वर्णन। १४ थी २० बौद्ध तत्त्वो, प्रमाण, तेओना ४ प्रकार तथा भिक्षुओर्नु वर्णन। २१ थी ३१ सांख्य २५ तत्त्वो, प्रमाण, मुक्तिनी व्याख्या तथा भिक्षुओ ३२ थी ३९ शैव-न्याय प्रमाण तथा १६ तत्त्वो ४० थी ४४ वैशेषिक प्रमाण तथा ६ तत्त्वो पछी बन्नेना मते मुक्ति नी व्याख्या अने भिक्षुओनुं वर्णन छ। ५५ थी ५८ नास्तिक मान्यता तथा प्रमाण । ५९ थी ५४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520514
Book TitleAnusandhan 1999 00 SrNo 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages144
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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