________________ ट्रॅक नोंध (1) - विजयशीलचन्द्रसूरि भोप्पय - भोप्प - भोपो - भोवो - भूवो मलधारी आचार्यश्री श्रीचन्द्रसूरिकृत सिरिमुणिसुव्वयजिणिंदचरियं (संवत् १९३)मां भोप्प' शब्दनो 'भूवा' अर्थमा प्रयोग थयो छे. ला. द. ग्रंथश्रेणिमां रूपेंद्रकुमार गरिया द्वारा संपादित - प्रकाशित (ई. १९८९)आ ग्रंथना पृ. 232 अने गा. ७४८७मां शब्दनो प्रयोग आ प्रमाणे छे. तीसे देवीए भोप्पयस्स आएसकारओ एक्को / तस्स य धूया सा बालविहविया दुलहिया नाम // संक्षेपमां कथाप्रसंग एवो छे के दंतपुरना राजा महाबलनो मंत्री सुविचार, लिपुत्र सुदर्शननी उत्पत्तिनी कथा कुमार श्रीवर्मने कही रह्यो छे. तेमां ते कहे छे के तपुरनी दक्षिणे चार कोश दूरे "खीबंज" देवीनुं मंदिर छे, तेना 'भोप्पय'नो आज्ञाकारी कि मनुष्य छे, अने तेनी बालविधवा दुर्लभिका नामे दीकरी तथा राजाना परिणयनुं रिणाम सुदर्शन छे.' / आ संदर्भमां 'भोप्पय' (गा. 7487, 7491, 7509, 7591, 7520) या 'भोप्प' (गा. 7489, 7505) आम बे रूपमां भोप्प शब्दनो प्रयोग जोवा मळे छे. खा वर्णन परथी फलित थाय छे के भोप्पय एटले देवी-मंदिरनो पूजारी, जे माताजीना भूवा' तरीके वर्तमानमा ओळखाय छे ते. आम छतां सांप्रत 'भूवो' ते ज 'भोप्प एवं स्पष्ट समजायुं न हतुं. एमां थोडा खत पूर्वे एवं बन्युं के अमारा पादविहार दरम्यान, एक गाममां डीसा तरफनां पण मूळे रवाड प्रदेशनां एक श्राविका बहेने वातवातमां एक एवो वाक्यप्रयोग कर्यो, जे सांमळतां / हुं चमकी गयो. तेमणे कडं, "मारे आ छोकरा माटे हवे कोई देवा-भोपा करवा यी." आमां एमणे 'भोपा' शब्द स्पष्टतया 'भूवा' एवा अर्थमां ज प्रयोज्यो हतो. मने रमा सैकामां प्रयोजायेला 'भोप्पय', पगेरुं आम अनायासे जडी आव्यु. उपर नोंध्युं छे तेम भोप्पयमांथी ज भोप्प-भोपो बनीने काळांतरे ते भोवा - वामां रूपांतरित थयुं होय तेम मने समजायुं छे. DinmRNBE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org