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________________ प्रकाशन - वर्तमान ताजेतरमां नीचे जणावेलां पुस्तको प्रकाशित थयां छे. आम तो अढळक उपयोगी साहित्य निरन्तर छपातुं ज रहे छे. परंतु तुरंत जेनं स्मरण थाय छे तेनी विगतो अत्रे नोंधवामां आवे छे. वाचकगण तरफथी पण जो आ प्रकारना प्रकाशित के प्रकाशित थनार साहित्य विशे विगत नोंध मळे, तो तेने यथायोग्य स्थान आपवानो प्रयत्न रहेशे : 1. इसिभासियाई शब्दकोश -डॉ. के. आर. चंद्र (ई. 1991) प्र. प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, अमदावाद 'इसिभासियाई' एक अतिप्राचीन, महत्त्वपूर्ण जैन आगमग्रंथ छे. देश - विदेशना विद्वानोमां तेनुं मोठं आकर्षण हमेशां रयुं छे. आ आगम ग्रंथनी समीक्षित संशोधित वाचनामां आवता समन शब्दोनो सार्थ कोश प्रा. चंद्रे आ पुस्तक द्वारा आपेल छे. 2. ग्रन्थत्रयी स्व. आचार्य विजयनन्दनसूरिजी * (1991) सं. विजयशीलचन्द्रसूरि, प्र. जैन ग्रंथ प्रकाशन समिति, खंभात आ पुस्तकमां स्व. आचार्य श्री -रचित प्रतिष्ठातत्त्व, आचेलक्यतत्त्व, पर्युषणातिथिविनिश्चय-आ त्रण संस्कृत ग्रंथोनो समावेश थयो छे. 3. नन्दनवनकल्पतरु (1) सं. कीर्तित्रयी (1991) प्र. जैन ग्रंथ प्रकाशन समिति, खंभात स्व. आचार्यश्री विजयनन्दनसूरिजीनी जन्मशताब्दी (सं. १९५५-२०५५)ना अवसरने अनुलक्षीने आ. श्रीशीलचन्द्रसूरिजी अने तेमना त्रण साथी साधुमहाराजोए करेली नूतन संस्कृत रचनाओ धरावता छमासिक सामयिकनो आ प्रथम अंक छे. दर छ महिने एक अंक आपवानो ख्याल छे, तेवू प्रास्ताविक निवेदन जोतां जणाय छे. अंगविज्जा-पइन्नयनुं पुनः प्रकाशन __ प्राकृत ग्रन्थ परिषद्ना उपक्रमे, आगम प्रभाकर मुनिराज श्रीपुण्यविजयजी द्वारा संपादित प्रकाशित प्रथम ग्रंथ 'अंगविज्जा' आजे अलभ्य छे. तेनुं यथावत् पुनर्मुद्रण हाथ धरवामां आव्युं छे. आमा आगोतरा ग्राहकनी स्कीम पण करवामां आवी छे. (ए माटे सरस्वती पुस्तक भंडार, अमदावादनो संपर्क साधवानो रहे छे.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520514
Book TitleAnusandhan 1999 00 SrNo 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages144
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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