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________________ 111 कल्पसूत्र : संपा. मुनि पुण्यविजयजी, पृ. 34 / प्र. नवाब, अमदावाद. ई. 1952 / / "यागान् - देवपूजाः " / - सन्देहविषौषधि-कल्प. टीका / जिनप्रभसूरिकृत / (र.सं. 1364) / प्र. हीरालाल हंसराज, जामनगर, ई. 1993, पृ. 88 // / "समणस्स णं भगवओ महावीरस्स अम्मापियरो पासावच्चिज्जा समणोवासगा यावि होत्था।" - आचारांग सूत्र : श्रुतस्कंध 2, चूलिका 3 // सं. मुनि जम्बूविजय / पृ. 265 / प्र. महावीर जैन विद्यालय, मुंबई / ई. 1977 // (1) "यजी देवपूजायां इति धातोर्यागान् - देवपूजाः, देवशब्देनाऽर्हत्प्रतिमा वाच्यतयाऽवगन्तव्याः / यतो भगवन्मातापित्रोः श्रीपार्श्वनाथापत्यत्वेन श्रमणोपासकत्वादन्याभिधेयत्वासम्भवः / " - कल्प. किरणावली / वा. धर्मसागरकृत / पत्र 87/2 / प्रका. जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर / ई. 1912 // "याग अनेक कर्या कह्यां , श्रीसिद्धारथ राजे रे , ते जिनपूजना कल्पमां , पशुना याग न छाजे रे श्रीजिनपासने तीरथे , समणोपासक तेहो रे। प्रथम अंगे कह्यो तेहने , श्रीजिनपूजानो नेहो रे" - वीरस्तुतिरूप हुंडी-स्तवन, कर्ता : वा. यशोविजयजी, ढाल 3, गा. 12-13 / प्रका. सलोत अमृतलाल अमरचंद पालीताना, वि.सं. 1979 // यागः / . . . . . गन्धादिना देवपूजायाम् / "गन्धपुष्पादिना देवपूजा यागोऽभिधीयते"। - शब्दार्थचिन्तामणि, कर्ता : सुखानन्दनाथ, उदयपुर / वि.सं. 1942 // "लाखों प्रकारके यागों (पूजा सामग्रियां)" - कल्पसूत्र, हिन्दी विवरण पृ. 138 : आ. देवेन्द्रमुनि शास्त्री // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520514
Book TitleAnusandhan 1999 00 SrNo 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages144
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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