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________________ .108 किन्तु यागका यह अर्थ वास्तविक नहीं हो सकता। यह अर्थ लक्षणा मददसे ही प्राप्त हो सकेगा, अभिधाकी दृष्टिसे कभी नहीं। फिर यह अर्थ कोई सम्मत भी नहीं है, एवं पुराने विवरणकारोंने भी कहीं नहीं स्वीकारा या दिखा है। विवरणकारों का आशय, शायद, ऐसा मालूम होता है कि वे 'जाए य साथ अनुबंध रखनेवाली क्रिया को यहां अध्याहृत मानके चले हैं, और सुसंगत भी प्रतीत होता है। अवास्तविक लक्षणाप्राप्त अर्थ स्वीकारनेकी बद वास्तविक वाक्यशेष स्वीकारना अधिक उचित भी बनेगा। "जाए य दाए य भाए य दलमाणे य दवावेमाणे य" इस वाक्यमें ई 'दाए' 'भाए' - इन तीनों पदों को सप्तम्यन्त मान लिया जाय और उनका 'यागमें, भागमें व दायमें देते - दिलाते' ऐसा किया जाय तो ठीक लगता क्योंकि वे राजा सर्व धर्मोंको आदर देनेवाले थे, अत: 'याग' ब्राह्मणधर्म क्रिया भले हो, किन्तु राजाके यहां पुत्रजन्म होनेकी खुशालीमें सभी धर्मके अपनी अपनी पूजाविधि करते होंगे और राजा उसमें उनको समर्थन देता हो ऐसी भी एक कल्पनाको यहां अवकाश है। व भागमें देना-दिलाना' ऐसा अर्थ किया जाय तो प्रथम तो 'दी जानेवाली अध्याहारसे या वाक्यशेषसे ढूंढनी पडेगी। क्योंकि जो 'दाय, भाग' दे क्रियाका कर्म था, वह तो अब अधिकरण-कारक बन गया, अतः का अध्याहृत ही रह जाता है ! और अब उसे वाक्यशेषसे लाना होगा। हो पाए ऐसा वाक्यशेष कितना दूराकृष्ट, काल्पनिक, अवास्तविक एवं अप्रमा होगा ! कम से कम कोई भी मान्य विवरणकारका समर्थन तो उसे नहीं मिलेगा। दूसरी बात, यह उस समयकी बात है, जिस समयमें याग बहुल..| हिंसात्मक ही होते थे। एक राजा अन्य धर्मोंको समर्थन देता था उसका अर्थ नहीं कि वह हिंसात्मक यागोंको भी समर्थन भी देता था। राजा सिद्धार्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520514
Book TitleAnusandhan 1999 00 SrNo 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages144
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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