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________________ अथ मार्ग:-क्षणिकाः सर्वसंस्काराः इति या व(वा)सना स्थिरा । स मार्ग इति विज्ञेयः स च मोक्षोऽभिधीयते ॥२६।। प्रत्यक्षमनुमानं च प्रमाणद्वितयं पुनः। चतुः प्रस्थानका बौद्धाः ख्याता वैभाषिकादयः ॥२७॥ अर्थो ज्ञानान्वितो वैभाषिकेण बहुमन्यते । सौत्रान्तिकेण प्रत्यक्षग्राह्योऽर्थो न बहिर्मतः ॥२८॥ आकारसहिता बुद्धिर्योगाचारस्य सम्मता । केवलं संविदं स्वस्थां मन्यन्ते मध्यमाः पुन ॥२९॥ रागादिज्ञानसन्तानवासनोच्छेदसम्भवा। चतुर्णामपि बौद्धानां मुक्तिरेषा प्रकीर्तिता ॥३०॥ कृत्तिः कमण्डलुhण्ड्यं चीरं" पूर्वाह्नभोजनम् । "सङ्घो रक्ताम्बरत्वं च शिश्र (श्रि)ये बौद्धभिक्षुभिः ॥३१॥ अथ साङ्ख्यम् ॥ “साङ्ख्ये देवः शिवः कैश्चिन्मत्तो(तो) नारायणः परैः। . उभयो [:] सर्वमप्यन्यत्तत्त्वप्रभृतिकं समम् ।।३२।। स(सा)ङ्ख्यानां स्युर्गुणाः सत्त्वं रजस्तम इति त्रयः । साम्यावस्था भवे(व)त्येषां त्रयाणां प्रकृति(ति:) पुनः ॥३३॥ १. बौद्धनइ मार्ग-सर्व क्षणिक क्षणभंगुर-एहवी जेहनी बुद्धि स्थिर एहने मार्ग, एतलुं जाण्यइ मोक्ष कहीयइ । २. प्रत्यक्ष अनइ अनुमान प्रमाण करी वस्तुनी सिद्धि करइ । ३. बिहु शास्त्रना प्रवर्तावक ४(च्यारि) वैभाषिकादि शिष्य छइ । ४. वैभाषिक तेहवं मानइ-पदार्थनइ ज्ञान एक मानइ । ५. सौत्रांतिक ते प्रत्यक्ष तेहज अर्थ पदार्थ मानइ अनइ अप्रत्यक्ष स्वर्ग, नरकादि न मानइ। ६. योगाचार ते बुद्धिनइ आकार मानइ-एतइ घटादि सर्व बुद्धयाकार । ७. मध्यम ते केवल जे ज्ञान तेहनइ आत्मस्थित मानइ, चिहं बुद्धिनइ मुक्ति एह परिनी मानइ । ८. राग-द्वेषादि तेहनूं जे जाणपणूं तेहनउ जे संमोह तेहनी वासना कहेतां संस्कार तेहनउ उच्छेद कहेतां नाश तेह थकी ऊपनी मुक्ति कहइ च्यारि बौद्ध । ९. बौद्धाण्डभाजनम् । द्वितीयपाठः । १०. अथ बौद्धना भिक्षु कहइ छइ । कृ त्ति चर्मपरिधान । ११. उदक पात्र कमण्डलु । १२. मस्तकि सद्र करावइ । १३. वाकल-वृक्ष त्वचा परिहइ ।१४. बिहुं पहुरामाहि जिमइ । १५. संघाडइ हीडइ । १६. वली राता वस्त्र पहिरइ । १७. बौद्धना भिक्षु एहवा वेस आश्रइ । १८. सांख्यभेद कहइ-एक सांख्य शिवनइ मानइ, केहा एक नारायणनइ मानइ । १९. बिन्हइ तत्त्व २४ ज मानइ । २०. सांख्यनइ त्रीनि गुण छइ-एक सत्त्व(१)रज(२) तम(३) । २१.ए तिन्हि गुणनी समी अवस्था तेहनइ प्रकृति कहइ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520514
Book TitleAnusandhan 1999 00 SrNo 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages144
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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