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________________ प्राकृत मुक्तक कविताना एक अमूल्य ग्रंथनी उपलब्धि तारागण महावादीन्द्र बप्पभट्टिसूरिकृत प्राकृत सुभाषित-संग्रह (शंकुक-संकलित) हरिवल्लभ भायाणी कवि बप्पभट्टि जैन परंपरामां १३मी शताब्दीथी बप्पभट्टिसूरिनुं जीवनचरित्र मळे छे. जन्म गंगा-यमुना दोआबना एक गाममां. शिक्षण अने संस्कारग्रहण गुजरातना मोढेरामां. कार्यक्षेत्र मुख्यत्वे कनोज अने ग्वालियर. मैत्री अने आश्रय गुर्जरप्रतीहार राजवी आम अपरनाम नागावलोक (एटले के नागभट्ट बीजा)नी साथे. एनो समय इ.स.७४४थी ८३९नो उत्तम कवि तरीकेनी शताब्दीओ सुधी ख्याति. सुभाषितसंग्रह 'तारागण' प्राकृत सुभाषितोना कोश तरीके 'तारागण'नी परंपरागत ख्याति होवा छतां तेनी कोई हस्तप्रत जाणवामां आवी न हती, के तेना स्वरूप, विषय अने विस्तार विशे पण आपणे तद्दन अंधारामां हता. पण १९७० लगभग बीकानेरना एक हस्तप्रतभंडारमां तेनी एक हस्तप्रत सद्गत अगरचंद नाहटाना ध्यानमां आवी. सद्गत प्रकांड विद्वान आदिनाथ उपाध्येए 'तारागण'ना संपादनकार्यनो आरंभ करेलो. छेवटे ए अधूरुं रहेतां में पूरुं कर्यु छे. 'तारागण' मां शंकुक नामना कविए बप्पभट्टिसूरिना आशरे ११६ सुभाषित संगृहीत कर्यां छे. अनुराग (संयोग, विरह, स्त्रीरूपवर्णन), अन्योक्ति, सज्जनदुर्जन, राज-चाटु जेवा परिचित विषयोने लगता सुभाषित प्राकृत मुक्तक कवितानी उच्च परंपरा जाळवे छे. एक तरफ हाल-सातवाहननी 'गाथा-सप्तशती' अने बीजी तरफ जयवल्लभकृत 'वज्जलग्ग' ए बेनी वच्चे 'तारागण'नो प्राकृत मुक्तकसंग्रह आवे छे. प्राकृत कविताना रसिक आस्वादको माटे 'तारागण' नूतन वानगीओनो रसथाळ नीवडे तेम छे. _ 'प्रभावकचरित' (इ.स. १२७८)ना 'बप्पभट्टिसूरिचरित'मां पूर्व परंपरानी सामग्रीनो उपयोग करीने आचार्य प्रभाचंद्रे बप्पभट्टिसूरिनुं जे विस्तृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520513
Book TitleAnusandhan 1999 00 SrNo 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages66
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size3 MB
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