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________________ 44 श्राविका शिलवंति गुणवंति मनमां न पाप प्रवेशा रे संयम गुणवंता ॥२॥ चंपापुरीमां शिवपद पांम्या छसे पुरुष परवरीया रे अविनासी आनंदा आषाढ सुदि चउदिशि दिन लायक सादि अनंत अनुंसरीया रे सुख परम आनंदा ॥३॥ चोपन लाख वरस संयमधरी सुखभर भोगवि आयु रे वसुपूज्य सुत वंदो बहोत्तेर लाख वरसनुं निरूपम सहजानंद पद थाय रे चिदानंद महेंदो ॥४॥ पंचकल्यांणिकना बहु ओछव करीनें पडिमा थपावे रे श्रावक पून्यवंता रतनसा नितनीत नवलि भक्ति करता धर्म दीपावे रे शासन जयवंता ॥५॥ जिन प्रतिमा जिनसरखि धारी समकित तत्त्व सुधारे रे अनुभवना रसिया विजयसौभाग्यलक्ष्मीसूरि भावें प्रभुर्गुण अनंत संभारे रे जिनमंदिर वसीया ॥ ६ ॥ ढाल । [१२] ( आवो आवो रे सयणां भगवति सुत्रने सुणीइं - ए देशी ॥ ) श्रीजी मंदिर तखते दिवाजे वासुपूज्य जयवंता प्रासाद बिंब प्रतिष्ठा ओछव रतनसा हरखें करंता । भवि तुमे वंदो रे वासुपूज्य जिनराया ॥१॥ मलकसा बांधव निज हेते ऋषभदेवनी प्रतिमा भूमिघरमा थपावे मोटो आनंद अधिको महिमा ॥२॥ भ० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520513
Book TitleAnusandhan 1999 00 SrNo 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages66
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size3 MB
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