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एकोन बत्रिस लाखना रे घंटनाद विशाल निसुणि परीकर परवर्या कांइ आवे ए आवे ए इंद्र अनुसार तो
ज० ॥२॥ पालक मुंकी नंदिस्वरे रे बीजुं रचिय विमान मंदिर जिन जननि भणि कांई त्रिण ए त्रिण ए प्रदक्षणा दान तो
ज० ॥३॥ इंद्र कहे जिन जनम महोछव करवो जे तुझ जात अवस्वापिनि प्रतिबिंब ठवी पंचरूपें ए पंचरूपें ए ग्रहे जगतात तो
ज० ॥४॥ मेरू पंडुकवन विषे रे लेई उछंगे स्वामि शक्र सिंहासन बेसीने कांई भक्तिथी भक्तिथी सेवन काम तो
ज० ॥५॥ इम निज निज थानक थकि रे आविया चोसठ इंद पेहेलो अभिषेक आदरे कांई मनमोदें ए मनमोदे अच्युत इंद तो
ज० ॥६॥ सेवक सुर आदेशथी रे लावे तीरथनां नीर चंदन फुल कलश घणां कांई मेले ए मेले ए जिनवर तीर तो
ज० ॥७॥ नाटक गीत मोटे स्वरे रे वाजिबना धौंकार थेई थेई सुरनारि करे रे कांई भूषण भूषण नो झलकार तो
ज० ॥८॥ वेसठ सुरपति स्नात्र महोछव किधो मन उल्लास ईशांन पंच रुपें करी काई अंके ए अंके धरे जिन खास तो
ज० ॥९॥
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