SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 10
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 5 ॥३४॥ ॥३५॥ ॥३६॥ ॥३७॥ ॥३८॥ अह परचक्कागमणं नत्थि त्ति सुन्नट्ठा(ठा)णे अहवा जीवनिमित्ते कहवि फुडं निभंतं जइ कहवि हवइ सूरो मासपमाणेण तहा मासेण व छम्मासं दह राये णव[णव] दुन्नि दिणे दोवरिसं अट्ठदिणेच्छवरिसं एणकमेण य विहिणा सो लहइ सयलसिद्धी अहवा नियपडिबिंबं नियच्छा(छा)यादिट्ठीए पिच्छइ नहमज्झगयं जाणिज्जइ तेण फुडं असिरेण च छम्मासं दोवरिसेण व मरणं जो पु(पि)च्छइ संपुन्नं सो पामई सुहसिद्धी हरिणो अहव विरंची तह जाणिज्जइ मरणं होइ मयंकम्मि वारए सूरो। जीवहरे होइ निब्भंतं कालं नाउण परह-अप्पाणं। निदि(द्दि)टुं जोइविंदेण दिणमिक्कं पंचराइयं पक्खं। जाणह कालं निसामेह तेमासं मरइ तह व पक्खेण। पक्खिक्कं पंचराएण तेवरिसं इक्कराइमाणेण। सूरपवाहे वियाणेहि निसिनाहो जस्स सकंमइ देहे। धणकणगसमिद्धिया जुवई नहमज्झे जो वि पिक्खए नूणं । जारिसियो तारिसं रूवं पुरिसं सुरूवफलिहसंकासं । कालं छम्मासियं नृणं जंघाहीणेण मरइ वरिसेण । नाइज्जइ बाहुहीणेण पुरिसं[सं]सुद्धफलहसंकासं। अजरामरसासयं ठाणं सरिसा निवडंति जत्थ गयणतले । सत्ताहे नत्थि संदेहो ॥३९॥ ॥४०॥ ॥४१॥ ॥४२॥ . ॥४३॥ ॥४४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520513
Book TitleAnusandhan 1999 00 SrNo 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages66
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy