SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 63 ढाल-८ (कहियुं किहांथी आवीयउ रे लाल , एहनी) समुद्रदत्त हरखइ करे ले लो , 'करइ वीवाह मंडाण रे , सोभागी. आरिम कारिम सहु कीया रे लो , काज चढ्यउ परमाण रे , सोभागी. ॥९५. दामन्नक परणइ तिहां रे लो , पुण्यइ परमाण रे सो० गोरी गावइ सोहला रे लो , कोकिल कंठवणाव रे सो० ॥९६. दा० इण अवसरि गोकुल सुणी रे लो , विवाह केरी वात रे सो० सागरपोतइ जन-मुंखई रे लोल , ' खेद धरइ बहु भात रे सो० ॥९७. दा० मइ अनेरउ चीतव्यउ रे लो , थययउ अनेरउ काम , सो० लहणइथी दयणइ पड्या रे लो , थयइ किम आराम रे. सो० ॥९८. दा० दाय उपाय करीसुं वली रे लो , करस्युं एहनउ घातउ रे सो० बेटीनउ दुख अवगणी रे लो , मारणरी करइ वात रे सो० ॥९९. दा० रौद्र-ध्यान धरतउ थकउ रे लो , आवइ खंगिल गेहरे सो० । मारा मारी तुं ए सही रे लो , मुंह माग्यउ द्रव्य लेह रे सो० ॥१००. दा० पहिली मुझनइ भोलव्यउ रे लो , देखाडी अहिनाण रे सो० तिण परितुं हिव मत करे रे लो , हरज्ये एहना प्राण रे सो० ॥१०१. दा० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520512
Book TitleAnusandhan 1998 00 SrNo 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages140
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy