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________________ 59 मातंग एक वसइ तिहां रे , मुह मांग्यउ द्रव्य आपिनइ रे , ल्यइ लाहो लखिमी तणो पूरइ वंछित आपणा ए बालकनउ वध करी रे, इम कहीनउ घरि आवियउ रे , खंगिल तिहांथी नीकलइ रे , हणवानी बुद्धइ करी रे , भावी ते तउ सही होय पामइ जीव कीया निज कर्म , नयण देखी बालनइ रे, विण अपराधइ किम हणुं रे, ए बालइ एहनो किसुं रे , कोमलतनुं कंचनसमउ रे, मो हुंती पापी नही रे , परधनलोलुप हुं थइ रे , ए करम करिवा भणी रे, बालहत्या नउ ते भणी रे, खंगिल तेहनउ नाम रे , बा० कहइ करि माहरउ काम रे , बा० ॥६३. तु० दूहा विलसइ भोग संयोग , जन्मांतर पुन्य योग. ॥६४. तु० ले आवे अहिनाण रे , बा० सागरपोत सुजाण , बा० ॥६५. तु० ढाल-६ बालकनइ ले साथि, सुणज्यो प्राणि , खड्ग लीयो निज हाथि सुणज्यो प्राणि. टाली सकइ नहीं कोय , सु० . . . . . . . आंकणी. ॥६६ ऊपनी करुणा चित्त , सु० सेठ तणउ ले वित्त. ॥६७. सु० विणसाड्यउ कोइ काज , सु० एहनइ किम हणुं आज. ॥६८. सु० अवर अधम इण काज , सु० बालक का हणुं आज. ॥६९. सु० उद्यत हुं थयउ मुढ , सु० पाप करूं किम गुढ. ॥७०. सु० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520512
Book TitleAnusandhan 1998 00 SrNo 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages140
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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