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________________ मातृकाप्रकरण : एक महत्त्वपूर्ण अभ्यसनीय कृति - सं. विजयशीलचन्द्रसूरि / हरिवल्लभ भायाणी 'मातृकाप्रकरण' ए संस्कृत तेमज प्राकृत भाषाओने लगती, मुख्यत्वे वर्णाम्नायने विषय बनावीने चालती, व्याकरणविषयक एक विलक्षण रचना छे. संस्कृत व्याकरणोमां वर्णसमाम्नाय (स्वरो तथा व्यंजनो)ना निरूपण-प्रसंगे एम कहेवामां आवतुं होय छे के "बाकीनो आम्नाय लोकात्-लोकसम्प्रदाय थकी जाणी लेवो.” संभवतः आ लोक-सम्प्रदायने शब्दबद्ध करवानो अहीं मजानो प्रयास थयो छे, जे अद्वितीय छे. कर्ताए श्लोकात्मक सूत्रोनी पद्धति अपनावी छे. श्लोकसूत्र अने तेनुं उदाहरण - आ सामान्य क्रम रह्यो छे. प्रशस्ति-सहित आवां कुल ३२२ सूत्रो छे, जेमां १ थी २०८ सूत्रो संस्कृत व्याकरण माटे छे. एमां छंदो, आस्यप्रयत्नो, जोडाक्षरोनी प्रक्रिया वगेरे विविध विषयोनो भारे ऊंडाणपूर्वक विचार थयो छे. रजूआत एटली बधी प्रगल्भ परंतु मार्मिक के गूढ शैलीमां थई छे के सादी वातो पण कांईक रहस्यमढ्यो परिवेष धारण करती जणाय छे. वर्णोनी संख्या (१९९) वर्णवतां कर्ता जैन-परंपरानुसारी द्रव्य-पर्यायनी अने जघन्य-उत्कृष्टनी शास्त्रीय प्रक्रियाने (२०१) लई आव्या छे, जे खरेखर अद्भुत छे अने कर्तानी विलक्षण प्रतिभा द्योतन करनार छे. २१० थी २२४ प्राकृत (सामान्य) अने शौरसेनी भाषा माटे, २२६-२३१ मागधी माटे, २३२-२३५ पैशाची माटे, २३६-२३९ चूलापैशाची माटे, २४०-२४९ अपभ्रंश माटे छे. २४९मा सूत्रमा गणावेली छ भाषा आ प्रमाणे छे : प्रकृति (संस्कृत), प्राकृत, शौरसेनी, मागधी, पैशाची, अपभ्रंश ; अंतमां तेने षडंगी वाक् गणावी तेने (तेनी लिपिने ?) हंसलिवि(पि) तरीके कर्ताए ओळखावी छे, जे संशोधको माटे विचारोत्तेजक बनी शके. जे ते भाषाना नियमो तथा उदाहरणो आपवा उपरांत कर्ताए दरेकमां सर्वोदाहरणो आप्यां छे, जे खास नोंधवायोग्य बाबत छे : सूत्र ४१, २११, २२०, २२७, २३७, २४३ इत्यादि द्रष्टव्य छे. वर्णाम्नाय अने तेनी खास विशेषताओ समजाववा माटे कर्ताए लोकोक्तिओ तथा उपमात्मक उदाहरणोनो एवो मार्मिक विनियोग को छे के जे कर्तानी कल्पना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520512
Book TitleAnusandhan 1998 00 SrNo 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages140
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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