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________________ ___50 50 प्रतवर्णन अने संपादन पद्धति उपर जणावेल कृतिनुं संपादन लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावादना मुनि पुण्यविजयना हस्तप्रत भंडारमाथी प्राप्त एक मात्र प्रत परथी करेल छे. आ प्रतनो क्रमांक ३८०९ छे. प्रतमां कुल्ले चार पत्र छे. पत्रनु कद २६.० x ११.५ से.मी छे. पत्नी बन्ने बाजु २.५ से.मी. नो हांसियो छे. प्रत्येक पाना पर १७ पंक्ति छे. कुल्ले १३६ कडीओ छे. पातळा कागळनी आ प्रत देवनागरी लिपिमां काळी शाहीथी ग्रंथकारे पोते लखेली - स्वहस्ताक्षर प्रति छे. पाठ सुधारेलां छे. पत्रनो क्रमांक जमणी बाजुए हांसिया मां दर्शाव्यो छे. आरंभमां भले मींडु कर्या पछी कृतिनो प्रारंभ करेलो छे. अने अंतमा 'इति दामनककुलपुत्रकसंबंधोयं' एम लखेलुं छे. प्रतनो लेखन सवंत् मळ्यो नथी. पण रचना संवत 'सत्तरइ सइ पइत्रीस समइ' अर्थात् १७३५ मळे छे अने स्वहस्ताक्षर प्रत होवाथी तेज समय लेखननो होवानुं अनुमान करी शकाय. एक मात्र मळेल प्रत परथी प्रस्तुत कृतिनुं संपादन कर्यु छे तेथी प्रतनो पाठ ग्रंथपाठ तरीके लीधो छे. क्वचित् लेखनमां थयेल दोष सुधार्यो छे. काव्यना कर्ता : ज्ञानधर्म काव्यना कर्ता के कविनाम के गुरुपरंपरा विषे काव्यना अंतिम भागमां श्रीखरतरगच्छ दिनकरु ए , युगवर श्रीजिनचंद्र वि० रीहड वंसई परगडउ ए , जिण प्रतबोध्या नेरंद्र १२८ वि० तासु सीस मतिसर गुरु ए , पुण्य प्रधान उवझाय वि० तासु सीस सुमतिसागर भला ए , पाठक पंडितराय १२९ वि० साधुरंग वाचकवरु ए , सकल शास्त्र प्रवीण वि० तासु सीस जगि जाणीय ए , पाठक श्रीराजसार १३० वि० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520512
Book TitleAnusandhan 1998 00 SrNo 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages140
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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