SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 45 दुण्हं तरणीण मुज्झे धरासुओ जम्मि दीसइ निविट्ठो । जाणिजइ कज्जसिद्धी लच्छी पियसंगमो तत्थ ॥१५।। (१६) ३२३ मज्झम्मि दिणयराणं दीसइ चंदो पइट्ठिउ जम्मि । -- नारी मणुज्जं पावइ सुहसंगमं तत्थ ।।१६।। (१७) ३१३ सूरंगी(गा)रयससिणो कमेण दीसंति संठिया जम्मि । ठाणलाभो य धणागमो य सुहसंगमो तत्थ ॥१७॥ (१८) ३२१ दीसइ चंदाण जुयं पुरउ मि तस्स संठियं जम्मि । विजयं तत्थ मुणिज्जसु लाभो सविसेसउ होइ ॥१८॥ (१९) ३११ मज्झम्मि ससि(स)हराणं भूमिसुउ जम्मि दीसइ पवनो । पयपियह सुयलाहो भणिओ पियसंगमो तत्थ ॥१९।। (२०) १२१ जइ मंगलाण जुयलं पुरउ चंदस्स दीसइ वलंतं । रायाण गुरुकिलेसं महाभयं दारुणं होइ ॥२०॥ (२१) १२२ चंदंगारयसूरा कमेण दीसंति संठिया जम्मि । वी(वो ?)लीणं गुरुदुक्खं कल्लाणं पावए पच्छा ॥२१॥ (२२) १२३ जइ ससि(स)हराण मज्झे दीसइ सूरस्स मंडलं विउलं । ता जाण विउललाहं हत्थी पियसंगमं तत्थ ॥२२।। (२३) १३१ ससि भाण आरु सहिया तिन्नि वि दीसंति जत्थ वणिविट्ठ (विणिविट्ठा)। ता कल्लाणं कित्ती जीयइ रिउमंडलं सहसा ॥२३।। (२४) १३२ अंगारयाण तियं पइ पयट्ठियं जम्मि दीसइ फुरंतं । तम्मि किलेसं कलहं महाभयं होइ मरणं च ॥२४॥ (२५) २२२ भउमजुयलस्स पुरओ जइ वि ससी होइ कह वि पायम्मि । ता उव्वेयं हाणी ठाणच्चाउ तहा होइ ॥२६॥ २३२ चंदो दिणयरजुयलं दीसइ पायम्मि संठियं तम्मि । जायइ तंपि सुभिक्खं सुक्खं तह संपया विउला ॥२७॥ १३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520511
Book TitleAnusandhan 1998 00 SrNo 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy