________________
सुरताण - हमीरह राय- रावत्तह दीधरं दानह दीन छलि, नन हूओ न होसि को व्यवहारी जगडू समवड एणि कलि. | १|| ये पावा धड वज्जी दूसम गंजी विनडिय लोकह बहूए परे, सबलह साहा हुंता जे समरत्थह अन्न न दीसई तेह घरे, दुर्बल दीन पार नह लब्भई पापी प्राणह बईठ गलई, न न. । २॥
69
गढमढ जिण कारी कुल सो तारी भुअणि सुजस भंडार भरई, संघपति सह जाणई दूसम माणइ पूरं लीधउं एणि परिं, कलिकाल जित्तो जगह वदीतो भडीत भग्गो भूअ - बलि, न न. ३ ॥
श्रीमाल न संकई वारो अंकइ दूसम स्यउं जिणइ किद्ध वदो, इंम कहई सधर अछे कोए भूख्यो नयरि नयरि निति पडई सदो, अन्न अघलअ वारी वाहर सारी सुकवि पई पइ एम सलिं. न न. ॥४॥ कलश कवितं
पनरोतरो दुकाल काल थइ जव करि ढुक्किउ, मायबाप तिणि वारि अलवि करि छोर मुंकिउ, तिहार भडिउ साह श्रीमाल अन्नदानह जिणइ दिप्पति, परिघल पुण्य जिणे करी, करह ओडाव्या नरपति,
कणगिरि गड्ढ करावयु संघ आणिउ शेत्रुंज शिरि, लज्जलू निशि करि लाह्या कंकण घल्ली एणि परि. ५ इति जगडूसाहा छंदः ॥ छ ॥
( २ ) अठय मूडि सहस्स दिद्ध वीसल वड वीरह, बारह मूडी सहस्स दिद्ध सिधवा हमीरह, गज्जणवई सुरताण सहस मूडा एकवीसह, मालवपति अट्ठार सहस परताप बत्रीसह, शेत्रुंज नई रेवयगिरिं दान - शाल बारोतरइ, जगडूअ साह सोला ताई. पुण्य कीध पनरोतरइ. 1१ ॥
Jain Education International
3
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org