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________________ 60 तुम्ह गुण गायवा हउ म० । सहस वदन शेषनाग लाल० । सहसलोचन इन्द्रई धर्या म० । जोवा गुण धरी राग लाल० ॥ ८१ ॥ जग सघलुं ए धोलिउं म० । तुम्ह गुणे गुरुराज लाल० । पण कुमति मुख श्यामिका म० । हजी लगइ नहि गई आज लाल० ॥ ८२॥ तुम्ह गुणा दरिओ उलट्य म० । प्लाव्या कुमति लोक लाल० । तुम्ह गुण रविकर विकसतइ म० । जाये भविक को (लो) क अशोका लाल० 11 2311 स्याहि अकब्बर रंजिउ म० । गाइ तुम्ह गुणगान लाल० । सभामंडल बइठो सदा म० । सुणतई मलिक उरखान लाल० ॥ ८४ ॥ अइ गुरु गुण तुम्ह तणा म० । लिखतां नावइ पार लाल० । तुम्ह गुण समुद्र मांहि झीलतां म० । देह निर्मल निरधार साह कुंरा कुलमंडणो म० । नाथी उदर राजहंस लाल० । नयर पाल्हणपुर अवतर्यो म० । उद्योत कियो उसबंसा लाल० ॥ ८६॥ सकल भट्टारक सिरधणी मनमोहन हो । अनोपम उपम अनंत । तेण करी तुम्हे भर्या (म०) जिम जल सरिदाकंत लाल० ॥ ८७॥ राग धन्यासी लाल० 11 6411 दूहा अथ निज सरीर परिकर सुख- समाधि समाचार । मोकलवा स्वशिष्यंनि वलता श्री गणधार तुम्ह हस्ताक्षर पत्रिका दीठइ मन विकसंति । मोकलवी ते कारणइ सेवकनी करी चिंता Jain Education International For Private & Personal Use Only ।। ८८ ।। ॥ ८९ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.520510
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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