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________________ 555 अमर सरिखा पुरुष तु जय जय ॥ ३२॥ स्याहि अकब्बरनी जिहां आण अधिक स्युं किजइ वखाण । स्वर्गखंड अवता तु जय जय ॥ ३३॥ राग - देसाख ॥ ३४॥ ॥ ३६॥ ॥ ३७॥ सोहि अमरपुरी अ समान मध्यखंडमंडनं प्रधान । नयर फतेपुर जगवदीत उत्तम घर घर छइ जिहां रीत गढ मढ मंदिर पोल पगार चोपट चोहटा जिहां उदार । हट्ट तणी चिहुं पासि उल माणिकचोक विचइ अमोल ॥ ३५ ॥ धनद समाना जिहां धनवंत वसइ व्यवहार्या अतिपुण्यवंत । भोग पुरंदरलीलविलास कियो काम निजरूप दास रतिरूप जिहां सुंदर नार घूघर नेउरनइ रणकार । कामी केरा मन मोहंति मंथर मराली गति सोहंति निरखइ केइ नाटक रंगरोल करइ केइ कथाकल्लोल । गवडावइ बइठा केइ गान भावभेद प्रीछइ सुजान कनकदंडमंडित प्रासाद इन्द्रविमानसुं करता वाद । श्री जिनवर केरां जिहां तुंग कैलास तणा जाणे के तुंग ॥ ३९ ॥ जिहां मुनिवर पोसाल विशाल जग गुरु हीरजी दीइ रसाल । बइठां जिहां मधुरो उपदेश सुणइ सादर भविअन सविसेस ॥ ४० ॥ प्रबल प्रतापवंत महीनाह राज करइ तिहां अकबर स्याह । स्याहि हमाउ केरो पुत्र निज भुजबल सवि जित्या शत्रु ॥ ४१ ॥ विस्तरइ जेहनी आगन्या चंड विकट रायना ते लइ दंड । पलावइ चिहुं खंड अमार जाणइ बीजो श्रीकुमार न्यायनीतं जाणे के राम अवतरिउ कलियुग अभिराम । रूपई जाई सोहइ काम खानमलिक करइ प्रणाम ॥ ४२॥ 11 8311 Jain Education International For Private & Personal Use Only 11 3211 www.jainelibrary.org
SR No.520510
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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