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________________ 48 उपदेशमाला सुगडांगवृत्ति छत्रीसजल्प तथा उ. श्री यशोविजयग. प्रसादित श्रद्धानजल्पनें अनुसारि मत्सरि सुविहितगछनी आज्ञा निरपक्ष्य थका सुद्ध सामाचारी विघयवी जे इहलोकानुरोधि अज्ञान कष्ट करी ते मायामृषावादी सद्देहवा ॥१९॥ तथा श्रीहीर. प्रसादितसमाचारीजल्पानुसारी नगरनी निश्राई २ मासकल्प उपरांत गुरुनी आज्ञा विना रहेवुं न कल्पे ॥ कल्पभाष्य श्रीजगच्चन्द्रसूरि प्रसादित सामाचारी जल्पानुसारि लोक आगलि सुविहितगछनां गुण ढांकी दोष प्रकासी लोकने व्युद्ग्रहसहित करी वंदनपूजनादिक व्यवहार टलावे ते शासनोच्छेदक सद्देहवा ॥ २० ॥ निशीथचूर्ण्यादिकने अनुसारि अगीतार्थ साधु गुरुनी आज्ञा विना नित्य वखाण करे निःशूक थइ गृहस्थ आणि सिद्धांत वांचे ते संयम श्रेणि बाहय पासत्था जाणवा ॥ २१ ॥ आवश्यकनिर्युक्ति दशवै. दशाश्रुतस्कंधा (दि) कने अनुसारि सांभोगिक पदस्थनें योगि निमंत्रणा विना जे नित्यें आहारादिक करे तेहनां नोकारसी प्रमुख पच्चक्खाण तथा महाव्रत लोपाइ गुरु अदत्ताहारादिक माटि ॥ २२ ॥ सामाचारी ग्रंथने अनुसारि गणेश साधुइं गुरुनी आज्ञा विना उपधान वहेरावे नहीं व्रतोच्चार करावे नहीं माल पहेरावें नहीं वांदणां देवरावे नहीं पोसह प्रमुख ना आदेश नापे । स्वेछाइ एतला वानां करावे ते गीतार्थनो प्रत्यनीक थाइ गुरुनी भक्तिभंगाशाताना संभवे माटि बीजुं एह विधि पिण गीतार्थगम्य छे. पंचाशकने अनुसारि एहवा माई मृषावादीनें साधु सुद्धपरुपक सद्दही विनयादिक करे तेहने पिण माठां फल संभवे ॥२३ ॥ पंचांगीने अनुसारिं खोटयं आलंबन लेइ कदाग्रहथी सामाचारी विघटयवे ते अवकर चंपकमाला सरिषा जाणिवा ॥ जिम समदृष्टिए बोल विचारी आराधक थाइ तिम आत्मा सुविहितें करवो ॥ २४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520510
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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