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सम्पादकीय निवेदन
'अनुसन्धान' मुख्यत्वे प्राकृत तथा जैन साहित्यना क्षेत्रे थतां सर्जन, संपादन, संशोधन आदिनी माहिती उपलब्ध करावी आपवा माटेनु एक माध्यम छे. तज्झोने तथा अभ्यासुओने आवी माहिती मळे, तो कोई कार्य बेवडातुं होय तो ख्याल आवे ; जाणकारो एक बीजा साथे पोतानी पासेनी माहिती, सामग्री के क्षमतानुं आदान-प्रदान करी शके इत्यादि घणा लाभो थाय, एवो आशय आनी पाछळ रह्यो छे. आम छतां, 'अनुसन्धान' मात्र माहितीपत्रिका न' बनी रहेतां एक शोध-पत्रिकाना स्वरूपमां पण निखरी रह्यं छे, ए तेना वाचकोथी हवे अजाण्यु नथी रह्यं.
जे जे विद्वानो, मुनिराजो प्राकृत / जैन साहित्यना क्षेत्रमा कांई पण कार्य करतां होय, तेमने तेमना ते कार्यनी माहिती आपती नोंध मोकलतां रहेवानो अमारो अनुरोध छे. अनुसन्धानना स्वरूप तथा क्षेत्रनी मर्यादामां आवनारां आवां ज्ञान-कार्योनी नोंध लेतां आनन्द ज थशे.
- संपादको
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